होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। जीवन में गुरु की अति आवश्यकता होती है। गुरु से जीवन में सब सुख मिलता है। बड़ी बात है कि गुरु से ही राह मिलता है। उक्त बात योग साधन आश्रम होशियारपुर में रविवार को सत्संग के दौरान आचार्य चंद्र मोहन अरोड़ा ने प्रवचन करते कहीं। उन्होंने कहा कि संसार में चींटी से लेकर ब्रह्मा तक सब सुख चाहते हैं। कोई भी दुखी नहीं रहना चाहता। परंतु गुरु वाले भी सुखी नहीं रहते क्योंकि वह उस राह पर नहीं चलते जो गुरु दिखलाता है। सुखी रहने के लिए कर्म करना पड़ता है। दुख तीन प्रकार के होते हैं।
अध्यात्मिक दुख आत्मा का दुख होता है। कुछ आत्मा भिन्न-भिन्न शरीरों में आती है तो वह दुख अध्यात्मिक दुख कहलाता है। हमारी आत्मा दुर्गति मे न आ जाए सद्गति में जाए इसके लिए हमें पांच यम, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचार्य तथा अपरिग्रह पर चलना पड़ता है। अर्थात किसी का मन न दुखाए, झूठ न बोले, चोरी न करें, धोखा न दे, पाप न करें, बुरी दृष्टि से न देखें और माया के पीछे मत भागें। दैविक दुख मन का दुख होता है। मन के दुख तो पाप कर्मों से ही आते हैं। अधिक इच्छाएं रखने से भी मन दुखी रहता है। मन के दुखों से बचने का रास्ता संतोष है। मन तो अति सूक्ष्म से अति स्थूल की इच्छा रखने में सक्षम है। दैहिक दुख शरीर के रोगों को कहते हैं। यह शरीर में जमा गंदगी के कारण आते हैं।
शरीर के अंदर होने वाले रोग जैसे किडनी फेल होना, अधरंग, सांस के रोग, हृदय के रोग, रक्तचाप ,शुगर, साइनस, टाइफाइड ,थायराइड, सर्वाइकल, डिस्क, माइग्रेन इत्यादि सभी शरीर में एकत्र गंदगी के कारण आते हैं। इन्हें योग के सरल साधनों से ठीक किया जा सकता है। ऋषि कहते हैं कि आने वाले दुखों को रोका जा सकता है। इन सभी रोगो को योग में नेति, बमन, कपालभाति, प्राणायाम, 4-5 सरल आसनों से दूर किया जा सकता है। जिस हृदय की ब्लॉकेज को हम डेढ़ से दो लाख बा घुटनों के दर्द को रिप्लेसमेंट में चार लाख खर्च करके ठीक करवाते हैं उन्हें 15 मिनट नेति, बमन ,प्राणायाम करके ठीक किया जा सकता है। योग आश्रम में यह क्रियाएं निशुल्क करवाई जाती हैं।