शिष्य स्वामी विज्ञानानंद ने विश्व हृदय दिवस पर कैदी बन्धुओं को स्वास्थ्य के प्रति किया जागरूक

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान” के द्वारा स्थानीय “जिला कारागार ऊना बनगढ़” में अपने कारागार बन्दी सुधार कार्यक्रम “अन्तरक्रान्ति” प्रकल्प के अंतर्गत तीन दिवसीय “आध्यात्मिक चिन्तन एवं ध्यान आयोजन” के आज दूसरे दिन संस्थान की ओर से “श्री आशुतोष महाराज जी” के शिष्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने विशेष रूप से आज विश्व हृदय दिवस पर कैदी बन्धुओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करते हुए योग और प्राणायाम करवाते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति की उत्कृष्ट विरासत “योग” की महानता से परिचित कराते हुए योग साधकों को बताया कि योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह तन, मन और आत्मा की एकात्म अवस्था का परिचायक है, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है, संयम और पूर्ति प्रदायक तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है।

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यह मात्र व्यायाम के बारे में ही नहीं है, वरन् अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी परिवर्तनशील जीवन-शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। इसीलिए गौरवान्वित होकर यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण विश्व में आर्यावर्त भारतीय योग मनीषियों द्वारा प्रदत्त “योग पद्धति” को उत्कृष्ट निधि के रूप में सर्वसम्मति से समग्र राष्ट्रों द्वारा अग्रगण्य स्वीकार किया गया । वस्तुत: संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने दिसम्बर 2014 में प्रतिवर्ष “21 जून” को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मनाने का संकल्प पारित किया।”योग” की रहस्यात्मक विवेचना पर प्रकाश डालते हुए स्वामी जी ने बताया कि आज मूलत: कुछ योगासनों और प्राणायामों को ही सम्पूर्ण योग पद्धति स्वीकार कर लिया जाता है। जब कि ऐसा नहीं है। “योग” शब्द संस्कृत की “युज्” धातु से बना है। जिसका अर्थ होता है “जुडऩा”। अर्थात हमारे तन, मन और आत्मा की एकात्म अवस्था ही योग है। “महर्षि पातंजलि” ने “योग” की परिभाषा देते हुए कहा है कि “योग: चित्त वृत्ति निरोध:” अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। फिर ही “योग: कर्मसु कौशलम्” की अवधारणा सिद्ध होती है।

स्वामी जी ने पातंजलि “योग सूत्र” के अनुसार साधकों को ताड़ासन, दण्डासन, कटिचक्रासन, अद्र्ध चंद्रासन, द्विचक्रिकासन, भुजंगासन, नाड़ीशोधन, अनुलोम विलोम प्राणायाम इत्यादि का विधिवत अभ्यास करवाते हुए इनके वैज्ञानिक पक्ष द्वारा दैहिक लाभों से परिचित भी करवाया। ध्यान देने योग्य है कि आज संस्थान की ओर से अपने “आरोग्य” प्रकल्प के अंतर्गत सम्पूर्ण विश्व में नि:शुल्क “विलक्षण स्वास्थ्य शिविरों” का आयोजन कर “सर्वे सन्तु निरामया:” की उक्ति को सिद्ध किया जा रहा है। भारतीय संस्कृति की मर्यादा बनाये रखते हुए कार्यक्रम का आरम्भ कारागार उप अधीक्षक जगजीत चौधरी और रवि ने ज्योति प्रज्वलित कर किया। सभी कैदी बंधुओं ने दैहिक आरोग्यता से परिपूर्ण कार्यक्रम का पूर्णत: लाभ प्राप्त किया।

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