पूर्व मंत्री अरोड़ा पर विजीलेंस की कार्यवाही: सियासी चाल या भरोसे की हत्या? चर्चाओं का बाजार गर्म

पिछले दो-तीन दिन से पूर्व कैबिनेट मंत्री पंजाब सुंदर शाम अरोड़ा को विजीलेंस द्वारा 50 लाख रुपये की रिश्वत देने के आरोप में गिरफ्तर किए जाने वाली खबर पंजाब की सबसे हॉट न्यूज़ बनकर चर्चा का विषय बनी हुई है। इस मामले को लेकर जहां सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार पूरी तरह से गर्म है वहीं विजीलेंस द्वारा की गई कार्यवाही को भी सवालों के घेरे में रखा जा रहा है। क्योंकि जिस प्रकार से विजीलेंस ने अरोड़ा पर कार्यवाही की उससे कई तरह की सवालों का जन्म लेना स्वभाविक सी बात है। एक प्रतिष्ठि हिंदी समाचार पत्र ने भी विजीलेंस की कार्यवाही पर सवाल खड़े किए हैं और प्रमुखता से इन्हें प्रकाशित करके आम लोगों को उन पर सोचने को विवश भी किया है। जब कोई नेता सत्ता में होता है तो उस पर लगाए जाने वाले आरोप निराधार हो जाते हैं और विजीलेंस या कोई अन्य एजेंसी उस समय खुद को असमर्थ पाती है। लेकिन जैसे ही सत्ता बदलती है, अधिकारियों के तेवर और शक्तियां उन्हें याद आने लगती हैं तथा कहीं न कहीं सत्ताधारियों के दवाब के चलते उन्हें सही और गलत में फर्क दिखने लग जाता है या दवाब के तहत काम करना पड़ता है, इस बात की हकीकत एवं आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि अकसर ही राजनीतिक पार्टियां मौके की सत्ताधारी पार्टी पर एजेंसियों के दुरपयोग का आरोप लगाती रहती हैं।

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लेकिन सुन्दर शाम अरोड़ा द्वारा 50 लाख रुपये की रिश्वत देने के मामले ने कई सवालों को जन्म दिया है। पहला सवाल ये कि विजीलेंस द्वारा जिस अधिकारी को यह जांच सौंपी गई, क्या उच्चाधिकारियों को पता नहीं था कि वह भी होशियारपुर से संबंधित हैं और परिचित होने के चलते वह अरोड़ा द्वारा संपर्क किए जा सकते हैं या किसी अन्य परिचित द्वारा कहे जाने पर जांच प्रभावित हो सकती है? दूसरा अगर अरोड़ा पर लगाए गए आरोप ठीक थे तो अधिकारी ने उन्हें घर पर आने की आज्ञा कैसे दे दी? आज्ञा दे दी तो ठीक, लेकिन उसे अपने कार्यालय भी बुला सकते थे और अगर कार्यालय में अरोड़ा रिश्वत की बात करते तो रिश्वत ऑफर किए जाने पर तुरंत कार्यवाही करवाई जा सकती थी। चर्चाओं में यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि घर पर सारी सैटेलमेंट होने के बाद एवं किसी भी तरह के सियासी दवाब तथा बात खुलने के डर से आगे की कार्यवाही को अंजाम दिया गया हो? अगर रिश्वत नहीं लेनी थी या कार्यवाही ही करनी थी तो अरोड़ा को दिन में भी बुलाया जा सकता था और दिन के उजाले में भी कार्यवाही को अंजाम दिया जा सकता था, जो नहीं किया गया। अधिकारी द्वारा उन्हें घर आने की आज्ञा देना, पैसे देने आ रहे अरोड़ा को किसी और स्थान पर बुलाना, अपने आप में पहले से रची गई साजिश या षड्यंत्र का हिस्सा माना जा रहा है, जिसकी गहनता से जांच किए जाने की मांग उठने लगी है। अरोड़ा पर जो आरोप लगे हैं तथा जिनकी जांच चल रही है उसमें कितना सत्यता है और कितना झूठ यह तो खुद अरोड़ा या विजीलेंस वाले ही जानते हैं, लेकिन इस प्रकार की गई कार्यवाही ने एक नई ही तरह की चर्चा को जन्म दे दिया है।

जिससे विजीलेंस भी खुद को सवालों में घिरी पा रही है। चर्चाओं में लोग न तो किसी के आरोप सिद्ध कर रहे हैं और न ही किसी को ईमानदारी का प्रमाणपत्र दे रहे हैं। लेकिन बात इतनी है कि विजीलेंस इस मामले में जो भी जांच करे उसका एक-एक तथ्य जनता के सामने रखा जाए कि अरोड़ा और विजीलेंस अधिकारी के बीच क्या बात हुई, कितनी बार बात हुई और वे अधिकारी के घर के अलावा कहां-कहां मिले। अरोड़ा द्वारा गिरफ्तार होने के बाद यह कहना कि अधिकारी ने भरोसे में लेकर फंसाया अपने आप में एक बड़ा सवाल है और इसे भी जांच में लाया जाना चाहिए, ऐसी भी चर्चा सुनने में आ रही है। अब देखना यह होगा कि इस मामले को लेकर विजीलेंस की जांच कैसा रुख लेती है और अरोड़ा खुद को बेगुनाह साबित करने में कितने सफल हो पाते हैं यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन, फिलहाल लोगों की नजऱें विजीलेंस के उस अधिकारी पर टिकी हैं, जिन्होंने रिश्वत देने आए अरोड़ा को रंगे हाथों विजीलेंस टीम को पकड़वाया, कि इसे लेकर अधिकारी की तरफ से क्या बयान आता है और उन्होंने अरोड़ा को घर मिलने की आज्ञा क्यों दी।

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