होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़): शिक्षण का पेशा एक महान पेशा है। एक शिक्षक ही देश के भविष्य का निर्माता हैं विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के साथ काम करने वाले शिक्षक विशेष शिक्षक कहलाते हैं। भारतीय पुर्नवास परिषद दिल्ली की तरफ विशेष शिक्षा में डिप्लोमा, बी.एड. और एम.एड करवाई जा रही है और रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट दिया जाता है कि वह अब विशेष बच्चों के साथ करने के योग्य हैं। विशेष शिक्षा का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। भारतीय पुर्नवास परिषद दिल्ली की तरफ से मूक-बधिर, दृष्टि बाधित, बौद्धिक अक्षमता इत्यादि दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के लिए विशेष शिक्षक तैयार किये जाते हैं और रजिस्ट्रेशन नम्बर दिया जाता है कि वह विशेष बच्चों के साथ काम कर सकते हैं।
भारत सरकार की तरफ से सभी सी.बी.एस.ई आई.सी.एस. ई. पंजाब स्कूल ऐजुकेशन बोर्ड में विशेष शिक्षक की नियुक्ति अनिवार्य की है लेकिन उसमें यह संशय जाता है कि हमारे सामान्य स्कूल में कोई विशेष आवश्यकता वाला विद्यार्थी नही है। विशेष शिक्षक सामान्य और विशेष दोनों तरह के बच्चों को पढ़ाने में सक्षम होता है। जब वह डिप्लोमा-इन-स्पैशल ऐजुकेशन या बी.एड. की शिक्षा ग्रहण करता है तो उनको शिक्षण अभ्यास के दौरान सामान्य और विशेष ज़रूरतों के बच्चों के साथ पाठ योजनायें सिखाई जाती है। विशेष शिक्षक सभी बच्चों को अतिरिक्त समर्थन प्रदान करते हैं। सामेकित शिक्षा और शिक्षा के सामान्य अधिकार के तहत सभी स्कूलों में विशेष शिक्षक होना अनिवार्य है। एक सामान्य कक्षा में भी अध्यापक सभी विद्यार्थियों को एक समयकाल में पाठ पढ़ाती है और नियमित समय पाठ्यक्रम समाप्त करती है उसी कक्षा में कुछ विद्यार्थी 95 प्रतिशत, 85 प्रतिशत, 65 प्रतिशत इत्यादि अंक ग्रहण कर कक्षा में उत्तीर्ण होते हैं। अध्यापक ने तो कक्षा में सभी विद्यार्थियों को एक जैसा पढ़ाया फिर अंकों में विभिन्नता क्यों ? हम विद्यार्थियों की योग्यता उनके अंको से मूल्यांकन करते हैं।
प्रत्येक विद्यार्थी या बच्चा अद्वितीय है, उसमें विभिन्न तरह की योग्यतायें और क्षमतायें होती है, हो सकता है उसकी रूचि संगीत, खेल, या कला में हो, ज़रूरत है बच्चों की दिलचस्पी या रूचि आंकने की। बच्चों का सर्वागीण विकास होना चाहिए, बच्चों के ऊपर अंकों का दवाब नहीं होना चाहिए। विशेष शिक्षक समर्पित एवंम धैर्यवान होना चाहिए। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के साथ काम करते समय धैर्य रखना पड़ता है। विशेष बच्चों और उनके अभिभावकों को मनोवैज्ञानिक समर्थन की आवश्यकता होती है। विशेष शिक्षक विशेष बच्चों की शारीरिक, मानसिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुये पाठ्यक्रम प्रारूप करते हैं। सीखने की अक्षमताओं, बौद्धिक अक्षमताओं, स्वलीनता, सेरेब्रल पालिसी, एकाधिक दिव्यांगता इत्यादि वाले विशेष बच्चों के साथ काम करने करते समय बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अभिभावकों को परामर्श, स्पीच थैरेपिस्ट, फिज़िओथैरेपिस्ट, क्लीनिकल साईकोलोजिस्टस, डॉक्टर्स, ओकूपेशनल थैरेपिस्ट, स्पैशल ऐजुकेटर्स सब मिलकर विशेष बच्चों पर काम करते हैं।
बाधारहित वातावरण, व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम, साकारात्मक रवैया, समूह शिक्षण सामाजिक कौशल, कार्यात्मक शैक्षणिक, दैनिक शारीरिक आवश्यकता के कार्य इत्यादि में विशेष बच्चों को प्रशिक्षित किया जाता है। इन गतिविधियों को सिखाते समय उनकी मानसिक, शारीरिक अवस्था पर ध्यान देते हुये अल्पकानिक लक्ष्य, दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। विशेष बच्चों को संवेदी गतिविधियों और संसाधन कक्ष गतिविधियों से व्यवहारात्मक समस्याओं पर नियंन्त्रण पाया जाता है और उन्हें विशेष शिक्षा प्रदान की जाती है। वोकेशनल ट्रेनिंग के साथ-साथ सांस्कृतिक, कला और खेल गतिविधियों में प्रशिक्षित किया जाता है। आज अध्यापक दिवस पर मेरा विशेष अभिभावकों से अनुरोध है कि प्रत्येक बच्चा विशेष है, उसकी साईकोलोजी और व्यवहार समझे, उन्हें अपनाये, घर में समाज में उनका स्थान बनाये। क्षमता को पहचाने-अनदेखा न करें, जो आप अपने बच्चों के लिए कर सकते वह और कोई नही कर सकता और विशेष शिक्षक के लिए संदेश है कि वह यथार्थवादी, प्रेरक, धैर्यवान और समाधानकर्ता बनें।