श्री रानी साहिब मंदिर में श्रीमद भागवत कथा में बही भक्ति व आस्था की गंगा 

कपूरथला (द स्टैलर न्यूज़), गौरव मढ़िया। श्री रानी साहिब मंदिर में श्रीमद भागवत कथा में बही भक्ति व आस्था की गंगा। मंदिर रंगीन लाईटों व रंग बिरंगी चुनरियों से सजाया गया, जैसे वृंदावन में भक्तजन पहुंचकर भगवान श्री राधा कृष्ण जी का आशीर्वाद लीया। हैरिटेज सिटी कपूरथला में श्री रानी साहिब मंदिर में श्रीमद भागवत कथा में श्री धीरज कृष्ण शास्त्री जी संगतो को कहा कि श्रीमद्भागवतम् पुराण या कथा हिन्दुओं के सबसे प्रसिद्ध अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसका मुख्य विषय आध्यात्मिक योग और भक्ति चेतना को जागृत करना है। इस पुराण में भगवान् श्री कृष्ण को सभी देवों में श्रेष्ठ माना गया है। श्रीमद्भागवतम् पुराण के रचयिता श्री वेद व्यास को माना जाता है। इस पुराण में रस भाव की भक्ति का चित्रण बहुत ही सूंदर तरीके से किया गया है। श्रीमद्भागवतम् पुराण के प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण के बारे में सम्पूर्ण चित्रण किया गया है। श्रीमद्भागवत कथा सर्व प्रथम भगवान शुकदेव जी द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया था

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इस पुराण में साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है। श्री ध्ीरज कृष्ण शास्त्री जी संगतो को कहा कि तुंगभंगा नदी के किनारे के एक गांव था वहां पर आत्म देव नाम का एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी धुंधली रहती थी आत्म देव तो सज्जन था लेकिन उसकी पत्नी दुष्ट प्रवृति की थी। आत्म देव बहुत उदास रहता था क्योंकि उसको कोई संतान नहीं हो रहा था। और बहुत बार उसने आत्महत्या करने की भी कोशिश किया लेकिन सफल नहीं हो पाया, लेकिन एक दिन हताश होकर जंगल की तरफ आत्महत्या करने निकल गए आत्म देव, रास्ते में उन्हें में एक ऋषि जी मिले और फिर आत्म देव ऋषि को अपनी कहानी सुना कर रोने लगा और उपाय पूछने लगा ऋषि ने कहा मेरे पास अभी तो ऐसा कुछ नहीं की जिससे मैं तुम्हें कुछ दे पाऊं, लेकिन आत्म देव ने बताया की उसकी गाय को कोई बच्चा नहीं हो रहा है और जब आत्म देव ऋषि को बार बार बोलने लगा तो ऋषि ने उसे एक फल दिया और उसको अपनी पत्नी को खिलाने को कहा और कहा की एक साल तक तुम्हारी पत्नी को  सात्विक जीवन जीना पड़ेगा। आत्म देव वह फल लेकर ख़ुशी ख़ुशी घर वापस आकर सारी बात धुंधली को बताता है और उसको वो फल खाने को देता है।

लेकिन धुंधली सोचती है अगर बच्चा हुआ तो उसको बहुत कष्ट का सामना करना पड़ेगा यही सोच कर वह उस फल को नहीं खायी और जाकर सारी बात अपने छोटी बहन को बताई तो उसकी बहन ने उसे एक रास्ता बताया और कहा की मैं गर्भवती हूँ और मुझे बालक होने वाला है तू ही लेना उसको और उस फल को गाय को खिला दे इससे उस ऋषि की शक्ति का भी पता चल जायेगा। धुंधली ने ऐसा ही किया। और अपने पति आत्म देव के सामने गर्भावस्था का नाटक करने लगी और कुछ दिन बाद  जाकर अपने बहन से बच्चा लेकर आ गयी। आत्म देव बहुत खुश हुआ खुशियां मनाई और उस बच्चे का नाम ब्रह्मदेव रखना चाहा लेकिन धुंधली ने फिर झगड़ कर उसका नाम धुंधकारी रखा। और धुंधली ने जो फल गाय को खिलाये थे उसके भी गर्भ से मनुष्य का बालक हुआ जिसके कान लम्बे लम्बे थे इसीलिए उसका नाम आत्म देव ने गोकर्ण रखा। श्री ध्ीरज कृष्ण शास्त्री जी संगतो को कहा कि दोनों बड़े हो गए जिसमें धुंधकारी दुष्ट व चाण्डाल प्रवृति का था तो गोकर्ण सरल स्वभाव का था। धुंधकारी सारे गलत काम करता एक दिन तो उसने अपने पिता आत्म देव की ही पिटाई कर दी। आत्म देव बहुत दुखी हुआ और अपने दुखी पिता को देख गोकर्ण उनके पास आया और उनको वैराग्य जीवन जीने के लिए कहा। और कहा की संसार में हम बस भागवत दृष्टि रखकर ही सुखी हो सकते है। गोकर्ण की बात मानकर आत्म देव गंगा के किनारे आकर भागवत के दशम स्कंध का पाठ करने लगे थे और उसी जीवन में उन्हें भगवान श्री कृष्ण की प्राप्ति हो गयी थी।समय बीतता गया और एक दिन धुंधली भी धुंधकारी के अत्याचारों को देख दुखी होकर एक कुएँ में कूद कर आत्महत्या कर ली। अब धुंधकारी एकदम ही अत्याचारी और दुष्कर्म वाला इंसान बन गया था।

वह वैश्यों के मांगो के लिए चोरी करता और एक दिन तो उसने राजा के यहाँ ही डाका दाल दिया सभी वेश्याएं सोची अगर ये जिन्दा रहा तो एक दिन हमको भी मरवा देगा। यह सोच कर उन लोगों ने धुंधकारी को बांध कर उसको जल्दी हुई आग में उसका मुख डालकर तड़पा कर मार डाला। बुरे प्रवृति के होने की वजह से धुंधकारी प्रेत बन गया और वह अपने भाई गोकर्ण को डराने लगा। हालाँकि गोकर्ण ने अपने भाई का श्राद्ध गया जाकर किया था लेकिन धुंधकारी को फिर भी मुक्ति नहीं मिली। वह गोकर्ण को डराने के कोशिश करता लेकिन गोकर्ण गायत्री मंत्र का जाप करता तो धुंधकारी उसके पास नहीं जा सकता था। गोकर्ण ने जब कहा की मैंने तो तुम्हारा पिंडदान कर दिया हूँ फिर भी तुम प्रेत बन घूम रहे हो तो धुंधकारी बोलता है की मैंने इतना पाप किया है पिंडदान से मेरा मुक्ति नहीं होगा। श्री ध्ीरज कृष्ण शास्त्री जी संगतो को कहा कि उसके बाद गोकर्ण ने सभी विद्वानों से राय लिया और सूर्य देवता को नमन कर इसका उपाय पूछा तो सूर्य देव ने कहा की इसको मोक्ष की प्राप्ति भागवत कथा सुनने से ही होगी।

गोकर्ण ने भागवत कथा का आयोजन किया और धुंधकारी एक बांस पर जाकर छिप कर बैठ गया वहां पर सात गांठ था वो वहीं जाकर बैठा था। बहुत से लोग सात गांठ का बांस लगते है भागवत कथा में की ऐसा मानता है की अगर परिवार का कोई सदस्य भूत हो गया है तो ऐसे अवश्य लगानी चाहिए। पहले दिन के कथा में पहला गांठ का भेदन हुआ ऐसे ही दूसरे दिन दूसरे में ऐसे करके सातों गांठों का भेदन हो गया। धुंधकारी दिव्य रूप धारण कर प्रकट हो गए और उनको लेने भगवान स्वयं आये। भागवत कथा बहुत लोगों ने सुनी होगी मगर धुंधकारी को स्वयं भगवान लेने क्यों आये बहुत कम लोग जानते होंगे। इसका वजह यह है की धुंधकारी ने पूरी भागवत कथा श्रद्धा तथा प्रेम भाव से सुना। इस अवसर पर मंदिर कमेटी के महासचिव शशि पाठक, कोषाध्यक्ष अजीत कुमार, मंदिर के सचिव वालिया,उपप्राधन मोहित गुप्ता, साहिल गुप्ता, वरुण शर्मा, सुनील कुमार, प्रमोद कुमार, विक्की गुप्ता, रछपाल सिंह, कुंदन कुमार, विकास गुप्ता, गोकुल शर्मा, मणी पाठक , शोभा रानी , श्री सत्यनारायण मंदिर के नरेश गोसाई, राजेश सूरी, अनील अग्रवाल , रविंदर अग्रवाल वीक्रम गुप्ता, रमन कुमार के अलावा बड़ी संख्या में भक्तजन व गणमान्य शामिल थे।

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