योग कहता है कि कर्म करो: आचार्य चंद्र मोहन

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में प्रवचन करते हुए आश्रम के आचार्य चंद्र मोहन जी ने कहा कि हम प्रभु की शरण में लोक व परलोक सुखी करने का भाव लेकर आते हैं। लेकिन इसके लिए प्रयास बहुत कम लोग करते हैं। उन्होंने कहा कि योगाचार्य सदगुरु देव चमन लाल जी महाराज कहा करते थे कि केवल बैठे रहने, सोए रहने तथा सत्संग करते रहने से यह संभव नहीं हो सकता। इसके लिए हमें लगातार प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि योग की शिक्षाएं दूसरी शिक्षाओं से अलग है। योग कहता है कि कर्म करो। योग कर्म सिखलाता है। उन्होंने कहा कि गीता को कर्म योग कहते हैं। उसमें कर्म करना सिखलाया है हम लोग गीता को पढ़ लेते हैं लेकिन उसमें जो लिखा है उसे नहीं करते सत्संग में आकर भी हम आपस में विचार तो करते हैं लेकिन वहां बताई गई बातों पर मनन नहीं करते। उन्होंने कहा कि गीता कहती है कि कर्म करने पर तुम्हारा पूरा अधिकार है, परंतु लोग कहते हैं कि जो भगवान करवाएंगे वही होगा गीता कहती है कि भगवान ने तुम्हें कर्म करने के लिए भेजा है तुम कर्म करो फल भगवान देंगे।

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अगर हम प्रभु जी की शिक्षाओं पर चलेंगे तो लोक व परलोक दोनों सफल हो जाएंगे। कर्म ईश्वर से पैदा हुआ है अगर हमने लोक सुखी करना है तो उसके लिए योग करना होगा। अगर लोक सुखी होगा तो परलोक भी सुखी होगा। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम अपने शत्रु के बस में ना आए। हमारे अंदर सुस्ती नाम का शत्रु पैदा होता है। योग न करने से हम रोगी हो जाते हैं। ऐसे में हम कर्म ठीक से नहीं कर पाते। रोग लगने पर हम किस्मत को कोसने लगते हैं लेकिन हम यह नहीं जानते कि इसका वास्तविक कारण योग ना करना है। प्रभु रामलाल जी योग को हमारे लिए फिर से लेकर आए हैं। यह सभी लोगों के लिए है किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं। हमें कर्म के प्रकार को भी समझना होगा। उन्होंने कहा कि कर्म भी सात्विक, राजसिक व तामसिक होते हैं। जो कर्म हम बुरे करते हैं उसे विकर्म कहते हैं यह तामसिक होते हैं। वह हमारा भला नहीं करते। कुछ कर्म रजोगुण से भरे होते हैं इसमें अच्छा भी होता है और बुरा भी होता है। लेकिन सबसे उत्तम कर्म अकर्म है जो हमें मोक्ष की तरफ ले जाता है। इसमें हम कर्म करते हैं लेकिन फल की इच्छा नहीं करते।

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