भक्ति परमात्मा को जानकर, नि:स्वार्थ होनी चाहिएः सुदीक्षा जी

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़): सत्‌गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के पावन सानिध्य में विशाल सत्संग कार्यक्रम बिजनौर के नहटौर-झालू रोड पर स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन के निकट मैदान में गत सांय आयोजित किया गया। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने अपने आशीर्वचनों में फरमाया कि भक्ति परमात्मा को जानकर ही होती है और भक्ति नि:स्वार्थ और भयमुक्त होनी चाहिए। परमात्मा पत्ते-पत्ते, डाली-डाली ब्रह्मांड के कण-कण सब में समाया है। यह अंदर-बाहर सब जगह मौजूद है और हर धर्म ग्रंथ ने यही समझाया है। परमात्मा को जानने के बाद मन से भय, स्वार्थ और अहंकार दूर हो जाता है। हानिकारक सोच और नकारात्मक विचार खत्म हो जाते हैं। सभी एक समान, बराबर हैं यदि मन कोई जाति-पाति का भेदभाव कर रहा है तो यह जान लें कि सभी एक ही परमपिता परमात्मा की ही रचना हैं।

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उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन अनमोल है और जीते जी ही परमात्मा की पहचान करनी है यह शरीर ही हमारी वास्तविक पहचान नहीं है बल्कि आत्मिक रूप से ही वास्तविक पहचान है। शरीर की अवस्था और आकार तो एक जैसा है परंतु व्यवहार से पता चलता है कि वह मानव है या दानव है। फरिश्ता और शैतान दोनों इंसानी रूप में ही होते हैं परंतु मानवीय गुणों से पता चलता है। आपजी ने उदाहरण देते हुए बताया कि फूल में खुशबू होगी और कोमलता भी होगी, फूल जिस भी अवस्था में होगा खुशबू ही देगा। कोई भी फलदार पेड़ हो तो फल देगा साथ ही तो उसका मूल है कि वह ऑक्सीजन भी देगा और छाया भी देगा। मानवता से ऊंचा कोई धर्म नहीं है और ऐसा ही इंसान का जीवन हो। जब मन में परमात्मा बसा रहता है तो प्यार का भाव, अपनत्व, एकता, विशालता, सहनशीलता, करुणा, दया इत्यादि मानवीय गुण मन में खुद-ब-खुद आ जाते हैं।

‘बिजनौर’ को परिभाषित करते हुए कहा कि ‘भक्ति के भाव बिजने हैं ओर’। उन्होंने समझाया कि भक्ति के बीज ही बिजेंगे तो उसका परिणाम भी अच्छा होगा, जीवन में प्यार ही होगा। इससे नफरत के कारण भी खत्म हो जाते हैं और किसी के प्रति भी नफरत का भाव नहीं होता, फिर मन में प्यार ही टिकता है। आदर सत्कार और प्यार से भरा जीवन होगा तो जीवन व्यर्थ नहीं होगा बल्कि गुणवत्ता वाला जीवन हो जाएगा। 

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