जो ईश्वर का चिन्तन करता है वह स्वत: ही चिन्ता से मुक्त हो जाता है: साध्वी गौरी भारती

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। श्री राधा गोविंद स्नेह मंदिर आदमवाल रोड होशियारपुर की ओर से करवाई जा रहीश्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन साध्वी गौरी भारती जी ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण पुराणों में श्रेष्ठ है। वह उस दर्पण की तरह है जो मनुष्य को उसकी आंतरिक सुंदरता का बोध करवाता है। इन्हीं भावों को सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या गौरी भारती जी ने मथुरा गमन प्रसंग के द्वारा समझाया। जब संशयग्रस्त अरूर जी श्रीकृष्ण और बलराम जी को रथ पर बैठाकर मथुरा की ओर बढ़ रहे थे, तब मार्ग में वे नदी में स्नान करने के लिए रुके। उन्होंने नदी में स्नान करते हुए प्रभु की दिव्यता का दर्शन किया और मन के सभी संशयों से मुक्ति को प्राप्त किया। लोग यह समझते हैं कि उनको नदी में ही श्रीकृष्ण व बलराम जी का दर्शन हो गया। परंतु ऐसा नहीं है। भागवत महापुराण समाधि की उत्कृष्टतम अवस्था में लिखा गया ग्रंथ है फिर एक साधारण मानव इनमें छिपे गूढ़ अर्थ को अपनी साधारण सी बुद्धि से कैसे समझ सकता है? वास्तविकता में आरूर जी ने ध्यान की नदी में उतरकर प्रभु का दर्शन किया था।

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आधाुनिक समाज में भी ध्यान के बारे मे कई भ्रांतियां बन गई हैं द्य कोई बल्ब पर दृष्टि एकाग्र करने को ध्यान कहता है तो कोई मोमबती पर। कोई मन को कल्पना के द्वारा किसी सुंदर स्थान पर ले जाने को ध्यान की प्रक्रिया समझ रहा है तो कोई बाहरी नेत्रें को मूँद कर बैठ जाने को ध्यान कहता है। श्री आशुतोष महाराज जी कहते हैं- उपास्य के बिना उपासना कैसी! साध्य के बिना साधना कैसी! ध्यान दो शव्दों का जोड़ है- ध्येय – ध्याता। ध्याता हम हैं जो ध्यान करना चाहते हैं लेकिन हमारे पास ध्येय नहीं है जो स्वयं ईश्वर है। इसलिए सबसे पहले ध्येय की प्राप्ति करनी होगी। उस ईश्वर, ध्येय को प्राप्त करने का केवल एक ही माध्यम है। जिसके बारे में यक्ष ने भी युधिष्ठिर से प्रश्न किया-क: पन्था:? युधिष्ठिर ने कहा-तर्कोप्रतिष्ठ: श्रुतयोविभिपा: नेकोट्टषिर्यस्य वच: प्रमाणम् धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गत: स पन्था:।। अर्थात् महापुरुषों के द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना होगा यानि उस ध्येय की प्राप्ति के लिए हमें भी किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु की शरण में जाना होगा। अंत में साध्वी जी ने ‘कंस वध’ प्रसंग का उल्लेख किया। अंतिम क्षणों में उन्होंने सामाजिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि आज कवबजवतेए मदहपदममते, उच्च शिक्षिति वैज्ञानिक भी कैसे पतन का परिचय दे रहे हैं। इसलिए शिक्षा के साथ दीक्षा का समन्वय अति आवश्यक है।

श्री महाराज जी का कथन है- वही शिक्षा सार्थक है जिससे एक व्यक्ति के भीतर विवेक जागृत हो तथा वह समाज निर्माण में अपनी सशक्त व जिम्मेदार भूमिका निभा सके। समाज में शिक्षा के वास्तविक अर्थ को पुन: स्थापित करने के उद्देश्य से गुरुदेव के मार्गदर्शन में वैदिक शिक्षा से प्रेरित ‘मंथन’ कार्यक्रम की नींव रखी गई। मंथन का यह अटल विश्वास है कि शिक्षा-दीक्षा के अनुपम संगम से हमारे राष्ट्र की ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की रीढ़ की हड्डी मजबूत होगी। मंथन प्रकल्प के माध्यम से आज गरीब बच्चों को शिक्षा के प्रकाश के साथ विवेक का बल भी प्रदान किया जा रहा है ताकि वे नैतिक मूल्यों को सिर्फ बोलने तक ही सीमित है भक्त ने ईश्वर भक्ति के सन्मुख अपने पिता हिरण्यकशिपु द्वारा दिए जाने वाले नाना प्रकार की यातनाओं की परवाह नहीं की तथा कोई भी प्रलोभन एवं बाधा उसे भक्ति-मार्ग से विचलित नहीं कर पायी। उसे मारने की हिरण्यकशिपु ने हर संभव कोशिश की। साध्वी जी ने बताया कि मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी भक्त घबराता नहीं, धैर्य नहीं छोड़ता! क्योंकि भक्त चिन्ता नहीं सदा चिन्तन करता है और जो ईश्वर का चिन्तन करता है वह स्वत: ही चिन्ता से मुक्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्गवद्गीता में कहते हैं -अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहा यहा।। अर्थात् जो भक्त ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं उसका योगक्षेम स्वयं भगवान वहन करते हैं। इस अवसर पर एडवोकेट राकेश मरवाहा, वरिंदर नंदा, हरीश शर्मा, परवीन मनकोटिया, राकेश मनकोटिया, राम यादव के.डी. महिंद्रू,पंडित प्रियवर्त शास्त्री, कुलदीप सैनी गप्पा, मोहिन्दर पाल, शिव गुप्ता कर्ण शर्मा, एस एस महिंद्रू, पुनीत गर्ग,अरुण पंडित रिंकु पंडित,निखिल पंडित हनीश गुप्ता,सुमन शर्मा, रजनी शर्मा, मनीषा शर्मा, सोनिया शर्मा, ममता गुप्ता व भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

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