हाल-ए-नगर निगम होशियारपुर: उधार की सांसों पर जिंदगी और दो अधिकारियों की बल्ले-बल्ले

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होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। होशियारपुर नगर निगम की हालत इन दिनों एक ऐसे मरीज जैसी प्रतीत हो रही है जिसकी सांसें वैंटीलेटर के सहारे चल रही हों, क्योंकि नगर निगम में साइनिंग अथार्टी वाले पदों पर एडीशनल तैनाती के कारण नगर निगम सफेद हाथी से अधिक कुछ भी नहीं। क्योंकि स्थायी अधिकारी जो सुबह 9 से सायं 5 बजे तक कार्यालय में बैठकर जनता के कार्य करे, न होने के कारण निगम की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है।

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कहने को तो भले ही होशियारपुर नगर परिषद से नगर निगम बन गया हो, परन्तु आलम ये है कि किसी भी तरह की शिकायत अथवा शहर के विकास हेतु अगर आप किसी बड़े अधिकारी से मिलने के लिए निगम पहुंचते हैं तो एक ही जवाब मिलता है कि साहिब फलां दिन आते हैं या सप्ताह में एकाध दिन ही आते हैं या साहिब नहीं हैं। मतलब यह है कि नगर निगम में बड़े पदों पर तैनात अधिकारियों के पास एडीशनल चार्ज होने के चलते उनके दर्शन कम ही होते हैं। अगर वे कार्यालय आते भी हैं तो डाक आदि का कार्य ही इतना होता है कि शहर के विकास की योजनाओं को गति प्रदान करने का उनके पास समय कम पड़ जाता है। ऐसे में आम जनता को अपने छोटे-छोटे कार्य करवाने के लिए काफी परेशानी से गुजरना पड़ रहा है।

मगर, दूसरी तरफ नगर निगम में बैठे दो अधिकारी ऐसे हैं जिनकी तो मानों कोई लाटरी ही निकल गई हो, क्योंकि न तो उन्हें पूछने वाला कोई है और न ही वे किसी की सुनते हैं। सत्ताधारी नेताओं को अपने वश में रखने की महारत वाले ये अधिकारी जिसकी सरकार होती है उसके नेताओं की शरण में ऐसे पहुंचकर आशीर्वाद हासिल कर लेते हैं कि मानों उनसे बड़ा उनका कोई हितैषी है ही नहीं (कभी इस दर तो कभी उस दर)। आम जनता के काम करते समय उन्हें कई तरह के नियम और कानून दिखते हैं, मगर जब राजनीतिक आका जी का आदेश हो जाता है तो सभी काम देखते ही देखते हो जाते हैं और उस समय न जाने वे नियम और कानून कौन से छिक्के पर टांग दिए जाते हैं।

निगम में एडीशनल चार्ज संभालने वाले एक अधिकारी तो ऐसे हैं जिन्हें नेताओं की बल्ले-बल्ले तो चाहिए, मगर जब मीडिया वाले जनता की परेशानियों को लेकर साहिब के पास पहुंचते हैं तो वे कैमरे पर आने से साफ इंकार कर देते हैं। मगर, कार्यालय में अपने दोस्तों और परिचितों के साथ चाय-कॉफी का आनंद लेना साहिब नहीं भूलते। इतना ही सूत्रों की मानें तो साहिब भी सत्ताधारी कुछेक नेताओं के विशेष कृपा पात्र बताए जाते हैं।

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एक और साहिब हैं अगर कोई समस्या उनके ध्यान में लाई जाए तो वे अपने किसी जूनियर से बात करने की नसीहत दे डालते हैं, जबकि सामर्थ अधिकरी होने के नाते उन्होंने शायद ही कभी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना जरुरी समझा हो। सप्ताह में एक-दो बार दिखने वाले इन साहिब पर भी विशेष कृपा दृष्टि के ही संकेत मिलते हैं, अन्यथा जनता की सेवा के लिए तैनात ये अधिकारी जनता की कैसी सेवा कर रहे हैं इसके बारे में जानते हुए भी उचित कदम उठाए जाने जरुरी नहीं समझे जा रहे। जिसका खामियाजा जनता को भुगतने को मजबूर होना पड़ रहा है। जनता का हाल ये है कि उसे छोटे-छोटे काम करवाने के लिए भी कभी एक दर तो कभी दूसरे दर की चौखट पर माथा टेकना पड़ रहा है और अधिकारी वर्ग कर्मियों की कमी का रोना रोकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री करने में लगे हैं जबकि सच्चाई ये है कि अगर किसी नेता के एक फोन पर कोई काम हो सकता है तो फिर जनता का क्यों नहीं?

स्थायी तौर पर बड़े अधिकारी न होने के कारण नगर निगम की कार्यप्रणाली को लेकर लगभग पूरा शहर ही दुखी है, इसमें सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही शामिल हैं। भले ही कोई खुलकर नहीं बोलता, मगर आलम ये है कि प्रदेश में कांग्रेस और निगम पर अकाली-भाजपा का कब्जा होने के कारण अखिर मुंह खोलें भी तो किसके खिलाफ, सो अंदर खाते सभी अपने-अपने काम करवाने में भलाई समझे हुए चुप्पी साधे हैं। परन्तु इस सबके कारण शोषण आम जनता का हो रहा है, जिसकी सच्चाई जानते हुए भी हर कोई एक-दूसरे के सिर पर घड़ा फोडऩे में लगा है।

यहां एक छोटा सा वाक्या आपके साथ सांझा करना चाहता हूं कि हाल ही में नगर निगम में एक व्यक्ति डेढ़ मरले में दुकान बनाने के लिए नक्शा पास करवाने के लिए पहुंचा। वहां मौजूद अधिकारी व कर्मियों ने उसे यह कहते हुए वापस भेज दिया कि जहां तुम दुकान बनाना चाहते हो वहां पार्किंग स्थल छोड़ो। कर्मियों की बात सुनकर उसके पैरों तले से जमीन खिस्क गई कि एकाध मरले में वह दुकान बनाए या पार्किंग छोड़े। अब दूसरी तरफ शहर के मुख्य मार्गों पर बनी कुछेक इमारतों पर नजऱ दौड़ाते हैं। शहर के फगवाड़ा रोड़ पर कई इमारतें ऐसी हैं जिनके मालिक पार्किंग को खा चुके हैं या नक्शे के विपरीत इमारतों का निर्माण करके अच्छा खासा किराया वसूल रहे हैं। और तो और हाल ही में शहर के होटल शिराज के समीप एक आलीशान इमारत बनकर तैयार हुई है, उसकी पार्किंग कहां है शायद यह देखना अधिकारी जरुरी नहीं समझते और न ही इसके लिए किसी तरह की कार्रवाई का प्रावधान व योजना रखी गई होगी। इतना ही नहीं सुतेहरी रोड, सरकारी कालेज रोड, जालंधर रोड, माल रोड, कोर्ट रोड (ग्रीन व्यू पार्क वाला मार्ग) सहित कई ऐसे इलाके हैं जहां पर बन रही या कुछ समय पहले बिना पार्किंग के बनी इमारतों की तरफ भी ध्यान दिया जाना जरुरी है। ग्रीन व्यू पार्क के समीप स्थित एक इमारत का आलम तो ये है कि उसने जो पार्किंग शो की हुई है वहीं गमले आदि रखकर उसे कवर किया हुआ है तथा लोगों को सडक़ पर वाहन पार्क करने को मजबूर होना पड़ता है। शहर में अनियमितताओं का बोलबाला इतना हो चुका है कि अधिकारी राजनीतिक दवाब होने का रोना रोकर आम जनता को तंग परेशान करके अपनी ड्यूटी की इतिश्री करने में लगे हैं। जबकि हाल ही में निगम द्वारा जोरशोर से शुरु की गई अतिक्रमण हटाओ मुहिम ने जिस तरह से दम तोड़ा है उसमें भी अधिकारियों की कथित तौर पर भेदभावपूर्ण कार्रवाई के चलते ही मुहिम को फेल माना जा रहा है। जिसका खामियाजा भी आम रेहड़ी वालों व दुकानदारों को ही भुगतना पड़ा था। एक साहिब खुद बाजारों में निकले थे और अतिक्रमण हटाने के नाम पर खूब मनमर्जी भी की, परन्तु अब वे न तो निगम में नजऱ आते हैं और न ही बाजार में। सवाल ये है कि आखिर नगर निगम की कार्यप्रणाली में सुधार कब तक आएगा और क्या कोई अधिकारी या नेता शहर के विकास को प्राथमिकता एवं जनता के कार्यों को पहल देने की पहल करेगा?

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