पंजाबी कल्चरल कौंसिल ने सरकारों से भारत-पाक व्यापारिक कॉरिडोर खोलने की मांग की

चंडीगढ(द स्टैलर न्यूज़)। पंजाबी कल्चरल कौंसिल ने भारत और पाकिस्तान सरकारों से माँग की है कि गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के लिए विशेष कॉरिडोर के खुलने से दोनों देशों के बीच आपसी सूझ और सहकारिता वाले माहौल की सृजना को देखते हुए द्विपक्षीय व्यापार को और प्रौत्साहन देने के लिए हुसैनीवाला (फिऱोज़पुर) और सादकी (फ़ाजिल्का सरहदी रास्ते भी खोलेने के लिए हल शुरू किये जाये जिससे पंजाबी और भारत के किसान, उद्योगपति और व्यापारी अपनी वस्तुएं अटारी समेत चार सरहदी सडक़ी रास्तों के द्वारा पाकिस्तान के रास्ते अन्य देशों को भेज कर खुुशहाल हो सकते हैं। कौंसिल ने यात्रियों की सुविधा को प्रमुख रखते हुए पाकिस्तान को जोड़ते डेरा बाबा नानक और हुसैनीवाला के पुराने रेल रास्ते को भी पुन: शुरू करने की मांग की है। इस संबंधी एक बयान में पंजाबी कल्चरल कौंसिल के चेयरमैन हरजीत सिंह ग्रेवाल स्टेट ऐवार्डी ने कहा कि दोनों देशों विशेषत: दोनों पंजाबों के किसान, उद्योगपति और व्यापारी काफी देर से आस लगाये हुए हैं कि ‘रैडक्लिफ लाईन’ के दोनों तरफ के पंजाबों के बीच आपसी व्यापार को उत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार में बहुत ज़्यादा सामथ्र्य और ज़रूरत है।

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उन्होंने कहा कि पंजाबी व्यापारियों को अफसोस है कि इस वक्त पड़ोसी देश के साथ व्यापार के लिए सिफऱ् वाघा सरहदी रास्ता ही खुला है परन्तु उस रास्ते से भी व्यापार को पूरी तरह उत्साहित नहीं किया जा रहा क्योंकि संगठित चैक पोस्ट अटारी में सुखद व्यापार से संबंधित अतिरिक्त विशेष सहूलतों की कमी है जिस कारण वस्तुओं के निर्यात और आयात बहुत धीमा है और व्यापारी वर्ग निराश है। विवरण देते कौंसिल के चेयरमैन ने कहा कि साल 2017 -18 के दरमियान अटारी रास्ते के द्वारा निर्यात और आयात क्रमवार 744 करोड़ रुपए और 3,404 करोड़ रुपए रहा जबकि 2014 -15 में यह संख्या क्रमवार 2,117 करोड़ रुपए और 2,368 करोड़ रुपए थी।

कौंसिल की दलील है कि करतारपुर रास्ता (कोरीडोर) खोलना एक बहुत बढिय़ा कदम है और इसने दोनों तरफ़ के निवासियों के अंदर बहुत सदभावना पैदा की है। इसलिए यदि अटारी की तरह हुसैनीवाला और सादकी सरहदी रास्ते भी व्यापार के लिए खुल जाएँ तो पाकिस्तान के कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत के किसान और उद्योगपति देश की आर्थिक खुशहाली में दोगुना विस्तार कर सकते हैं क्योंकि लहिंदे पंजाब को खेती तकनीकों और सहायक धंधों की अत्यंत ज़रूरत है जिस के लिए चढ़ता पंजाब यह कमियां पूरी करने के पूरी तरह समर्थ है। हरजीत ग्रेवाल ने कहा कि इस समय पर पंजाब के उद्योगपति और व्यापारी कांडला (गुजरात) या नावा शेवा (महाराष्ट्र) स्थित बंदरगाहों के द्वारा दुबई को वस्तुओं का कारोबार करते हैं जहाँ यह माल कराची बंदरगाह और फिर पाकिस्तानी पंजाब भेजा जाता है जोकि मंहगा सौदा है और और वस्तुएंं की कीमतें बढ़ जाती हैं। इस तरह पंजाब के बीच वाले दोनो सरहदी रास्ते खुलने से सिफऱ् 40-50 किलोमीटर की दूरी के साथ ही समान आयात और निर्यात हो सकता है।

उन्होंने कहा कि अटारी के द्वारा द्विपक्षीय व्यापार का पूरा तरह से न खुलना पंजाब और यहाँ के कारोबारियों और व्यापारियों के साथ सीधा नाइंसाफी है क्योंकि यदि प्रधानमंत्री के पैतृक राज्य गुजरात की कांडला बंदरगाह पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय व्यापार के लिए सारा वर्ष खुली रह सकती है तो अटारी -वाहगा रास्ते के द्वारा 24 घंटे व्यापार करने में क्या दिक्कत है। कौंसिल नेता का कहना है कि हज़ारों किलोमीटर दूरी के द्वारा वस्तुएँ ढुलाई करने की बजाय पंजाब के रास्तों के द्वारा न सिफऱ् द्विपक्षीय कारोबार को सफलता मिलेगी बल्कि समय की बचत होने के साथ-साथ तेल के कम उपभोग के कारण ट्रकों और समुंद्री जहाजों के इधन कारन वातावरण के माड़े प्रभावों समेेत हवा और पानी के प्रदूषण से भी बचा जा सकेगा। पंजाबी कल्चरल कौंसिल ने माँग की है कि स्थानीय व्यापारिक प्रतिनिधि मंडलों, औद्योगिक और व्यापारिक चैंबरों, पीएचडी चेंबर ऑफ कॉमर्स, सी.आई.आई., निर्माता और कारोबारियों को खुले और लम्बी मियाद के वीजे दिए जाएँ जिससे वह अंतराष्ट्रीय व्यापार के लिए मौके तलाश सकें क्योंकि पंजाब के बड़े औद्योगिक शहरों में से खेल का समान, आटो कंपनियाँ, फार्म मशीनरी और साइकिल कंपनियों का उच्च मानक का समान तैयार होता है और अतिरिक्त अनाज की पैदावार होती है जिस कारण पाकिस्तान के साथ व्यापार का बहुत बड़ा सामथ्र्य है और पंजाब को इससे बेहद लाभ प्राप्त हो सकता है।

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