मनप्रीत सिंह रेहसी (कार्यकारी संपादक, द स्टैलर न्यूज़)
एक कहावत है कि ‘इक्की-दुक्की टिड वजोण, ते फाडीयां नूं गफ्फे ओण’ इन दिनों भाजपा के एक मंत्री पर पूरी तरह से चरितार्थ होती नजर आ रहे हैं। असल में भाजपा के मंत्री जो विकास कार्यों के लिए ग्रांटों के गफ्फे पर गफ्फा तो दे रहे हैं, मगर सवाल यह है कि वे ग्रांट कैसे जारी हो रही है, कौन करवा रहा है, कहां खर्च की जा रही है और कितनी खर्च की जा रही है संबंधी ब्यौरा रखना व नींव पत्थर रखकर काम शुरु करवाने का रिवाज मंत्री जी के कार्यालय में शायद नहीं है तथा इसका लाभ उस इलाके से जुड़े विपक्षी दल के नेता व कार्यकर्ता जरुर उठा रहे हैं। यानि कि जो जीता उसको महिमा-मंडित किया जाना जरुरी नहीं समझा जा रहा और इसका श्रेय कोई और ही उठा रहा है। पार्टी सूत्रों की मानें तो केन्द्र से जुड़े भाजपा के एक मंत्री द्वारा एम.पी. लैड फंड से कई विकास कार्य करवाए जा रहे हैं, परन्तु उन कार्यों से संबंधित अधिक स्थानों पर बोर्ड ही नहीं लगाए गए तथा न ही उनके कार्यालय में किसी को पता है कि ग्रांट कितनी आई थी और कितनी खर्च हुई। पार्टी सूत्रों से पता चला है कि नेता जी के साथ जुड़ कर नए-नए नेता जी बने कुछेक कार्यकर्ताओं के हाथ जैसे गिदड़सिंगी लग गई हो और उनके तेवर तो नेता जी से भी कई हाथ आगे नजऱ आते हैं। इतना ही नहीं भाजपा मंत्री द्वारा ग्रांट देने का लाभ विपक्षी उठा रहे हैं तथा यह प्रचार किया जा रहा है कि विकास कार्य उन्हीं की मेहनत का नतीजा है। राजनीतिक माहिरों का मानना है कि जिस तरह से मंत्री जी के कार्यालय से जो ग्रांटों का काम हो रहा है उससे लगता ही नहीं कि आगमी चुनाव में वे उनके नाम पर जनता से पार्टी के लिए वोट मांग सकेंगे।
चर्चा तो पहले भी उड़ी थी कि ग्रांट?
इतना ही नहीं ग्रांटों में चली रही उथल-पुथल को लेकर पहले भी कई खबरें चर्चा का विषय बनी थी और उनमें से कुछेक तो काफी मशहूर भी हुईं। परन्तु बावजूद इसके मंत्री जी के पास इतना समय नहीं कि वे उनकी खुद की ही नहीं बल्कि पार्टी की छवि पर इस कारण पडऩे वाले बुरे प्रभाव पर कुछ विचार विमर्श कर सकें। हल्का निवासी जहां अपने नेता जी के दर्शनों को तरस जाते हैं वहीं ग्रांटों को लेकर किसी तरह की पारदर्शिता के न होने से कहीं न कहीं वे हाथ सवालों के घेरे में हैं जो ग्रांट का काम देख रहे हैं।
लगता है अच्छे विकल्प के इंतजार में हैं मंत्री जी?
पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार नेता जी के साथ जुड़े कुछ लोग उन्हें इस बारे में बता भी चुके हैं, मगर बावजूद इसके व्यवस्था में सुधार किए जाने जरुरी नहीं समझे जा रहे। जिसके चलते आगामी चुनाव में इसका लाभ विपक्षी दल उठाएं इस कयास से इंकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल तो मंत्री जी की स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि मंत्री जी या तो जानबूझ कर इस तरफ ध्यान नहीं देना चाहते या फिर वे किसी विकल्प की तलाश में हैं।