नामजप के समय विचारों की धूल उडऩा मन व आत्मा की सफाई का संकेत: शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। मां विमलाम्बा शक्ति संस्थान, हरदोखानपुर में आयोजित किए जा रहे धार्मिक अनुष्ठान के दौरान सुबह की सभा में प्रवचन करते हुए परमपूजनीय जगदगुरू शंकराचार्य पूरी पीठाधीश्वर स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने धर्म-अधर्म के मार्ग पर चलने वालों में अंतर और वातावरण परिवर्तन का ज्ञान प्रदान किया। इस दौरान श्रद्धालुओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए महाराज श्री ने बताया कि जिस प्रकार गर्मी, सर्दी, वर्षा का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, जैसे मीठे पानी वाली मछली खारे पानी में नहीं रह सकती तथा खारे वाली मीठे जल में नहीं रह सकती।

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उसी प्रकार हम पर भी वातावरण परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है। सात समंदर पार की बात नहीं करते हमारे भारत में ही एक बिंदू से दूसरे बिंदू पर वातावरण व स्वभाव बदल जाता है। गंगा जल को अगर चमड़े के पात्र में डाल दिया जाए तो क्या वह गंगा जल रह जाएगा। मिट्टी, पानी, हवा, धूप व अग्नि का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है। महाराज श्री बताया कि भूगौल भी शास्त्र के आधार पर जाना जा सकता है, आज कल तो भूगौल भी अधूरा पढ़ाया जा रहा है। मिट्टी के रंग से उसकी ऊपजाऊ शक्ति व स्वभाव का पता चलता है और इन चीजों का ज्ञान तभी होगा जब हम शिक्षा को वैदिक शास्त्रानुसार जानेंगे। उन्होंने बताया कि पैदल यात्रा में मिट्टी का परीक्षण करके ही वहां के लोगों के स्वभाव और क्षेत्र का अनुमान लगा लिया जाता था कि वहां जाने पर किस प्रकार का व्यवहार होगा। मगर आज शास्त्रों से भारतीयों को दूर किया जा रहा है। धर्म और परमात्मा की प्राप्ति के लिए धर्मानुसार आचरण करना और सीमा में रहना होगा।


इस दौरान शंकराचार्य जी ने पत्रकारों के साथ बातचीत में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि जिस पाश्चत्य संस्कृति एवं शिक्षा पद्धिति के अभिषाप को हमने वरदान समझ लिया है वह भारत और सनातन धर्म का पतन का कारण बनी। लेकिन इसके प्रभाव को शास्त्रों एवं धर्मानुसार रोका जा सकता है तथा इसके लिए भारतीयों को ज्ञान का सहारा लेना होगा।

युवा देश की संस्कृति को बचाने और देश की तरक्की में किस प्रकार योगदान डाल सकते हैं संबंधी पूछे गए सवाल के जवाब में महाराज ने कहा कि मोबाइल, कम्प्यूटर के युग में भी अगर वैदिक आर्य शास्त्रों पर चलते हुए युवा संस्कृति का अनुसरन करें तो वे देश में संस्कृति के स्थापन और तरक्की मेंयोगदान डाल सकते हैं, क्योंकि साइंस को समझने के लिए शास्त्रों को समझना बहुत ही जरुरी है। एक अन्य सवाल के जवाब में शंकराचार्य जी ने बताया कि जिस प्रकार किसी गंदे कमरे को साफ करने पर धूल उड़ती है तथा मेहनत से साफ करने पर धीरे-धीरे वह पूरी तरह से साफ हो जाता है उसी प्रकार जब हम परभु नाम जप में मन को लगाते हैं तो विचारों की धूल उड़ती है जोकि सफाई का संकेत है तथा धीरे-धीर मन एवं आत्मा की शुद्धि होने पर मन प्रभु भक्ति में लग जाता है। जिस प्रकार कोई बच्चा स्कूल जाकर पढ़ाई करने से कतराता है और फिर एक दिन ऐसा आता है कि उसे किताबों के प्रति लगाव हो जाता है और वह बिना पढ़ाई किए नहीं रह सकता, उसी तरह प्रभु में मन लगने पर मनुष्य की वृति हर समय प्रभु में ही रमी रहती है। इसलिए नाम जप के समय मन पर जमी धूल को उडऩे दें जोकि मन की सफाई का संकेत है।

इस मौके पर रमेश भारद्वाज, जे.के.पासी, संदीप शर्मा, निपुण शर्मा, तिलकराज चोहान, गौरव ऐरी, संदीप नागौरी, बिन्दुसार शुक्ला, सतीश खन्ना, सुभाष कालिया, अश्वनी गुप्ता, बलदेव गोड़, अजय कुमार मदन मोहन शर्मा, संध्या पस्सी, सीमा शर्मा, अमिताब शर्मा सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

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