पंजाब (द स्टैलर न्यूज़)। आपने अकसर असल जिंदगी में या कहानियों में लोगों द्वारा किसी न किसी कारण आत्महत्या करने की बातें सुनी होंगी, लेकिन यह कभी नहीं सुना होगा कि पूरे का पूरा गांव विधवाओं का हो और उनके पतियों ने आत्महत्या कर ली हो। सुनने में तो यह एक काल्पनिक कहानी प्रतीत होती है। लेकिन आपको बता दें कि पंजाब में एक ऐसा गांव हैं जहां के पुरूषों ने कर्ज तले दबकर आत्महत्या करके जीवनलीला समाप्त कर ली और उनकी पत्नियां बेसहारा हो चुकी हैं।
बता दें कि पंजाब के 2 गांव ऐसे हैं जहां किसी भी परिवार का कोई भी पुरूष नहीं बचा है और इस गांव में रहने वाले सभी पुरूषों द्वारा आत्महत्या करने की वजह से लोगों ने इन गांवों को विधवाओं का गांव कहना शुरू कर दिया है। एक तरफ भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है और किसान को अन्नदाता, परंतु बेहद दुख की बात है कि विश्व का पेट भरने वाले किसान यहां सरकारों के लिए सहारा है, लेकिन जिस प्रकार कर्ज के बोझ तले दबे किसान खुदकुशी कर रहे हैं, ऐसे सिस्टम को देखकर लगता है कि यहां कि सरकारों के लिए किसान और गरीब तबका केवल वोटबैंक हैं और कुछ नहीं।
आपको बताते चलें कि हम बात कर रहे हैं पंजाब के मानसा जिले के कोटधर्मु गांव की जहां के किसान इसीलिए मौत के मुंह में जा रहे हैं क्योंकि, वह कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं और वह उस कर्ज को चुका पाने की स्थिति में नहीं हैं। कोटधर्मु गांव में यह केवल एक-दो घर की नहीं बल्कि प्रत्येक घर की यही कहानी है। वहीं, कोटधर्मु गांव की कुछ ही दूरी पर भम्मा गांव है जहां के परिवारों में भी कोई पुरूष नहीं बचा है। कर्ज की दीमक इन परिवारों को इस प्रकार खा गई की हर माह कर्ज की कुछ कीमत चुकाने के बावजूद ब्याज बढऩे के कारण कर्ज वहीं का वहीं रहा और खाने के भी लाले पड़ गए। जिससे परेशान हुए किसान अपनी जान देते गए।
गौरतलब है कि सरकारों द्वारा किसानों के लिए कर्ज मुआफी योजनाओं आदि जैसी कई सुविधाजनक योजनाएं तो निकाली हैं परंतु कोई-कोई किसान ही इसका लाभ ले पा रहा है तथा कई गांव तो अभी भी ऐसे हैं जहां, इन योजनाओं के प्रति किसान जागरूक नहीं हैं और वह इन योजनाओं का लाभ लेने से वंचित हैं। इसलिए सरकार को चाहिए की ऐसे गांवों पर ध्यान देकर पहल के आधार पर उनकी समस्याएं हल की जाएं ताकि वह लोग भी अपनी बाकी की जिंदगी को खुशी से व्यतीत कर सकें। कई बार किसानों को कपास जैसी फसलों को न्यूमतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर बेचने को मजबूर होना पड़ता है वहीं, दूसरी तरफ मौसम खराब होने की वजह से या सरकारी व्यवस्थाओं में कमी की वजह से फसलें खराब भी हो जाती हैं तो इससे परेशान होकर किसान आत्महत्या का रास्ता चुन लेता है। सरकार को चाहिए कि आत्महत्या करने वाले किसानों को जमीनी स्तर पर मुआवजा दिया जाए न कि कागजों में।