कलयुग में खाटू श्याम जी की पूजा से मिलता मनोवांछित फल: शशि पाठक 

कपूरथला (द स्टैलर न्यूज़), गौरव मढ़िया: प्राचीन श्री महारानी साहिबा मंदिर में श्याम मित्र मंडल व कमलेश कुमार कुशवाहा की ओर से 12 वां श्री श्याम कथा संकीर्तन 27 नवंबर दिन रविवार को सायं 6 बजे से प्रभु इच्छा तक बड़ी धूमधाम से करवाया जा रहा है।जिसमे हजारों की संख्या में बाबा श्याम के उपासक भाग लेकर बाबा श्याम का गुणगान करेंगे।इस दौरान मंदिर प्रबंधक कमेटी के पदाधिकारी शशि पाठक ने जानकारी देते हुए बताया कि 27 नवंबर दिन रविवार को सायं 6 बजे से प्रभु इच्छा तक  मंदिर प्रांगण में श्री श्याम कथा संकीर्तन का कार्यक्रम आयोजित होगा।उसके बाद भव्य आरती गायन कर भोग प्रशाद बांटा जाएगा।

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शशि पाठक ने बताया कि संकीर्तन में बाबा श्याम भक्ति रस धारा प्रवाहित करने के लिए विभिन भजन गायक भजनों की प्रस्तुति देंगे।उन्होंने बताया कि संकीर्तन संध्या में बाबा के छप्पन भोग की झांकी,पावन अखण्ड ज्योति के साथ ही पुष्प और इत्र वर्षा का आयोजन भी किया जायेगा।शशि पाठक ने कहा कि श्याम गाथा में बताया कि कलयुग में खाटू श्याम जी की पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।उन्होंने खाटू श्याम जी के संपूर्ण जीवन चरित्र में बताया।उन्होंने कहा कि खाटू श्याम जी हारे के सहारे हैं,इन्हें तीन बाणधारी भी कहा जाता है।अपनी माता को दिए हुए वचन के अनुसार जो भी इनके दरबार में जाता है, उसकी ये पूरी सुनवाई करते हैं।

उन्होंने कहा कि पौराणिक मान्यताओं के आधार पर भगवान खाटूश्याम जी का संबंध महाभारत काल से है।पांडु पुत्र भीम के पौत्र (घटोत्कच और मौरवी के पुत्र) बर्बरीक की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने इन्हें कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था। बर्बरीक के खाटूश्याम बनने के पीछे पौराणिक कथा है कि बचपन से ही इनमें एक कुशल योद्धा के सभी गुण विद्यमान थे।बर्बरीक को युद्धकला का ज्ञान उनकी माँ और श्रीकृष्ण ने दिया तदुपरांत घोर तपस्या करके उन्होंने भगवान शिव से तीन बाण प्राप्त किए।ये तीन बाण तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में सक्षम थे।कुछ किंवदंतियों के अनुसार बर्बरीक देवी के उपासक थे और देवी के वरदान से ही उन्हें वे तीन बाण प्राप्त हुए थे जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते,जिसकी वजह से बर्बरीक अजेय हो गए।उन्होंने कहा कि महाभारत युद्ध के समय बर्बरीक युद्ध देखने की चाह लिए कुरुक्षेत्र की ओर चल दिए।

श्रीकृष्ण उनकी क्षमता से परिचित थे इसलिए वह ब्राह्मण वेश में उनके समक्ष आए और उनका परिचय और लक्ष्य पूछा।बर्बरीक ने अपना परिचय एक दानी योद्धा के रूप में देते हुए उन्हें बताया कि वह महाभारत के युद्ध में हारने वाले के पक्ष में युद्ध करने की इच्छा से वहाँ जा रहे हैं।श्रीकृष्ण जानते थे कि हारने वाला पक्ष तो कौरवों का ही है किन्तु यदि बर्बरीक कौरवों की ओर से युद्ध करेंगे तो अधर्म की विजय होगी जो न्यायसंगत नहीं।अत:उन्हें रोकने की मंशा से उन्होंने बर्बरीक से शक्ति की परीक्षा देने के लिए कहा तब बर्बरीक ने एक ही तीर से पीपल के वृक्ष के सभी पत्तों में छेद कर दिया किन्तु एक पत्ता श्री कृष्ण के पैर के नीचे दबा हुआ था इसलिए वह बाण उनके पैर के ऊपर आकर ठहर गया।यह देखकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनके दानी होने की परीक्षा देने के लिए कहा और उनसे उनका शीश माँगा।

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