एक बार एक मंत्री था या है: अधिकारी की दो टूक, टाइल मंत्री के खास से लोगे तो ही होंगे विकास कार्य

एक बार एक मंत्री था, क्या है, अच्छा मुझे पता नहीं था। क्यों आपको क्यों पता नहीं कि मंत्री है। वो हुआ यूं कि अकसर ही मंत्री कब है से थे हो जाएं, राजनीति है भाई। अच्छा तो हम कहां थे और मैंने ऐसा क्यों कहा। वो इसलिए कि राजनीति में एक रिवाज तेजी सम पनपने लगा है कि जिन लोगों ने चुनाव के दिनों में उम्मीदवार की मदद की होती है तथा जब उम्मीदवार जीत जाता है तो उन लोगों को अपनी पहचान बताने के लिए नाको चने चबाने पड़ते हैं। क्योंकि, जीत के बाद उसे लगने लगता है कि उसे तो किसी जादू ने जिता दिया, उसे तो किसी की जरुरत ही नहीं था तथा ऐसे में कुछ ऐसे चापलूस टाइप के लोग उसके इर्दगिर्द घूमने लगते हैं और वे उसे बताते हैं कि तिजौरी कैसे भरते हैं। जब तिजौरी की बात आती है तो नेता जी को वे लोग सबसेे प्रिय लगने लगते हैं। ऐसे में स्वभाविक सी बात है कि दरियां बिछाने वाले तथा जोड़तोड़ करने वाले तो पीछे होंगे ही।

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असी छोडि़ए इस बात को। हम कहां थे? जी हम बात कर रहे थे एक मंत्री था। जो कहता था भ्रष्टाचार नहीं करुंगा और न ही गलत लोगों का साथ दूंगा। आज कहां है सबको पता है। लेकिन दूसरी तरफ एक है। अब उसकी भी सुन लीजीए। क्या, , ,क्या सुनाऊं। ईमानदार है, बहुत प्यारा है, मिलनसार है। जी तो मैंने कब इससे इंकार किया। वो तो है। लेकिन तब तक ही जब तक वे खुद को जमीन से जुड़ा हुआ समझता था। ओ, हो आप भी न मुद्दे से भटका देते हो। हम बात कर रहे थे कि कैसे चापलूस लोग मंत्री को तिजौरी भरने की तरकीबें बताते हैं और कैसे वो एक भोलाभाला सा इंसान उनकी बातों में आकर लालचवश खर्च पूरा करने में जुट जाता है।

अब चर्चा की बात करें तो एक अधिकारी को हुक्म हुआ है कि जिन गांवों में विकास कार्य चल रहे हैं या करवाए जाने हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है गलियां एवं सडक़ों पर टाइलें लगाने का कार्य। अब भाई जब अपनी किसी परिचित ने टाइलों की फैक्ट्री डाल ली हो और साइलैंट पार्टनर आका जी भी हों तो भाई किसी और फैक्ट्री से टाइलें कैसे सप्लाई हो सकती हैं। अब जनाब हुआ यूं कि गांवों में विकास कार्यों की देखरेख करने वाले एक अधिकारी को हुक्म हुआ कि गांवों में पंचायतों को आदेश जारी कर दो कि टाइलें वहां से लो और नकद लो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो विकास कार्य ठप ही समझो। अधिकारी की बेबसी कि उसे तो आका का हुक्म मानना है और आका का माध्यम वो बनता है जो सालों से आका का लेखाजोखा रखने का काम करता आ रहा है।

वैसे एक बात है यहां पर बुजुर्गों की कही एक बात बहुत याद आ रही है कि जब भगवान किसी को हुस्न, नजाकत और ताकत देता है तो उसे संभालने का बल भी किसी-किसी को ही प्रदान करता है। इसलिए परमात्मा का शुक्र करना चाहिए कि उसने आपको किसी काबिल बनाया। खैर हमें क्या, अब ये संस्कारी बातें तो सभी जानते हैं। लेकिन जो खर्च किया, न भी किया हो तो भी पूरा करने या भंडार भरने में क्या जाता है। अब कोई तो जरिया बनाना ही है। क्या आपकी भी टाइलों की फैक्ट्री है, तो भाई साहब उसे चंद सालों के लिए ताला लगा दीजीए। क्योंकि, जब आपकी सैटिंग ही नहीं है तो आप फैक्ट्री क्या घर में टाइलें लगाने के लिए बना रहे हैं।

आप भी न बस कमाल करते हैं और मैं ही मिला था मजाक करने के लिए। क्या कौन सा मंत्री है, क्या कहां का है, क्या नाम है। बस आपके ऐसे सवालों से ही मुझे बहुत डर लगता है। डर लगे भी क्यों नहीं, मैं छोटा सा, मामूली सा पत्रकार और आप ठहरे बड़े लोग। आपकी बातों में मुझे न फसाएं। मुझे दे इजाजत। कुछ तो खुद समझा करो। जल्द ही मिलते हैं अगली चर्चा पर चर्चा करने के लिए। जय राम जी की।

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