
कहते हैं पल्ले नी धेला ते करदी मेला मेला, यह कहावत इन दिनों होशियारपुर में एक भाजपा नेता पर खूब सटीक बैठती नजऱ आ रही है। क्योंकि, यहां धेला का मतलब पैसा नहीं बल्कि जनाधार व आधार से लिया गया है। यह वह भाजपा नेता है जिसने पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था और उसके बाद न जाने क्या जुगत भिड़ाई कि वह उसी नेता का करीबी बन बैठा।

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आका क्या बनाया उसके सिर पर खूब ऐश भी की और कामकाज भी। लंबे समय से पार्टी की सेवा का राग अलापने वाला यह नेता इन दिनों कुछेक नेताओं की चढ़त को लेकर खासा ही परेशान दिखाई दे रहा है तथा इनकी नाराजगी अकसर ही फेसबुक पर डाली गईं पोस्टों से साफ झलकती दिख जाती है। और तो और यह नेता जी ऐसे हैं जिन्होंने न तो कभी जेब से फूटी कौड़ी खर्च की और न ही पार्टी का जनाधार मजबूत करने में कोई अहम भूमिका निभाई, लेकिन नेता जी की जी हजूरी में महारत हासिल ऐसी की कि फोटो में सबसे आगे रहने का हुनर सीख लिया। लेकिन जब भी किसी कार्यक्रम में पैसे खरचने की बात आती या भीड़ जुटाने की बात आती तो जनाब ऐसे गायब हो जाते, जैसे…। चर्चा लंबी न करते हुए सीधा मुद्दे पर आते हैं कि इन दिनों जनाब अपने ही भाजपा नेताओं ऐसा कहें कि साथियों की तरक्की एवं उन्हें पार्टी में जिम्मेदारियां दिए जाने से चिढ़े हुए दिखाई दे रही हैं।
हालात ये हैं कि छोटी-छोटी बात भी उन्हें चुभने लगी है, जबकि कुछ न होते हुए भी पार्टी ने उक्त नेता को बड़ी जिम्मेदारियों पर नवाजा व श्रीमती को पार्षद बनाया। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। चर्चा है कि जब नेता जी आपने किसी से ढंग से बात ही नहीं करनी तथा पार्टी कार्य के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं करना व सबसे बड़ी बात समय ही नहीं देना तो फिर पार्टी आपको उच्च पद पर आसीन क्यों करे। यह तो स्वभाविक सी बात है। अब जो लोग पार्टी को समय देते हैं व हर कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं, ऐसे कार्यकर्ताओं को पार्टी में आगे रखा जाता है, ऐसा भाजपा का अनुशनस कहता है। लेकिन एक नेता जी की चिढ़ ने पार्टी में अलग ही चर्चाओं को जन्म दे दिया है तथा हर कोई इधर से उधर और उधर से इधर की करके खूब चुटकियां ले रहा है। अब सारी गेम आका के हाथ में है कि उसे समझाते हैं या फिर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर उसका…। समय बहुत हो गया भाई जी मुझे दें आज्ञा। जय रामजी की।