भक्त प्रभु की बातें ना करके प्रभु से बात करें: आचार्य चंद्र मोहन

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम माडल टाउन में साप्ताहिक सत्संग के दौरान भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए आश्रम के आचार्य चंद्र मोहन जी ने कहा कि योग में भक्ति महान है। योग दर्शन में भक्ति को ईश्वर प्रणिधान कहा गया है। योगाचार्य सतगुरु देव चमन लाल जी महाराज कहा करते थे कि इससे समाधि मिलती है। जब हम ईश्वर को समर्पित हो जाएंगे तो भक्ति मिलेगी। योग में हठयोग, राजयोग और भक्ति योग, योग की त्रिवेणी है। इस में हठयोग बहुत प्रबल है, राजयोग शांत है और भक्ति योग अदृश्य है। यह गंगा जमुना सरस्वती की तरह हैं। इसमें सरस्वती दिखाई नहीं देती हठयोग और राजयोग हम करते हैं पर भक्ति योग कहीं भी दिखाई नहीं देता। वास्तविक भक्ति करने पर भगवान व भक्त में अंतर नहीं रहता।

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माता और पुत्र का प्यार अदृश्य होता है। माता अपने पुत्र पर निछावर होने को तैयार रहती है। इसी प्रकार भगवान भी अपने भक्त का नुकसान नहीं होने देते। गीता में भगवान कहते हैं कि मेरे भगत का विनाश कभी नही होगा। परंतु भक्ति सच्ची होनी चाहिए। आज लोग भगवान के आगे शर्त रखकर भक्ति करते हैं कि अगर ऐसा करोगे तो हम भक्ति करेंगे नहीं तो वह भगवान भी बदल देते हैं। गीता का 12 अध्याय भक्ति पर ही है। गीता के अनुसार भक्त में 35 गुण होने चाहिए। भगवान और भगत का संबंध किसी को पता नहीं लगना चाहिए, अगर हम मे यह गुण नहीं है तो हम सच्ची भक्ति नहीं करते। भगवान और भगत का संबंध गुप्त रहना चाहिए। भक्तों की आस्था शुद्ध होनी चाहिए। मन तथा तन भी शुद्ध होना चाहिए उसकी वाणी भी शुद्ध होनी चाहिए। भगत अंदर से साफ होना चाहिए और अंदर बाहर दोनों से मौन होना चाहिए।

भक्त प्रभु की बातें ना करके प्रभु से बात करें। गीता पढ़ो तो इन बातों का पता चलता है। भगत को बहुसंगी नहीं होना चाहिए। उसे एक निष्ठ भक्ति करनी चाहिए। जो भगत स्थान स्थान पर जाता है वह सच्ची भक्ति नहीं कर पाता तथा ना ही भक्ति के लिए समय निकाल पाता है। वह परिवार दुनिया और मित्रों के साथ मगन रहता है। इसलिए उसको भक्ति करने का समय ही नहीं मिलता। भक्तों को सबको अपना मित्र समझना चाहिए। क्योंकि सब में ईश्वर व्याप्त है इसलिए दुश्मनी किससे करोगे। भक्ति खंडे की धार है। हमारी भक्ति भी अनन्य होनी चाहिए। हम किसी एक इष्ट की भक्ति करें। माया भ्रमित करती है हमें उससे बचना है। अगर हम किसी एक गुण को भी सिद्ध कर लेते हैं तो बाकी सभी गुण आप ही आ जाते हैं अन्यथा व्यक्ति भटक जाता है।

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