धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है जनेऊ: डा. संध्या प्रकाश

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। भगवान श्री परशुराम जी के जन्मोत्सव पर श्री ब्राह्मण सभा होशियारपुर में दो दिवसीय यगोपवित संस्कार का कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमे ब्राह्मण परिवारों के 10बच्चों ने पूरे विधि-विधान से शास्त्रों के अनुसार जनेऊ धारण किया।जनेऊ धारण करते समय उनका पूजन,मुडऩ संस्कार करवाया गया,जिसके बाद उन बच्चों को संस्कृत कालेज के प्रधानाचार्य श्री संत प्रकाश शर्मा के सानिध्य में मंत्रोउचारन से हवन यज्ञ के बाद जनेऊ धारण करवाया गया।

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जनेऊ धारण करने के बाद इन बच्चों ने वहाँ आये परिवारों से भिक्षा मांगी और डॉ संध्या प्रकाश जी से मंत्र दीक्षा ग्रहण की। जनेऊ धारण करने वाले ब्राह्मण परिवार के बच्चे पार्थ शुक्ला,पंकज शर्मा,गोपाल शर्मा, आशीष शर्मा,अरुण शर्मा,राहुल,अंकेश शर्मा, अक्षय शर्मा,कार्तिक शर्मा, शशांक शर्मा शामिल थे।

इस मौके पर यगोपवित धारण करने वाले बच्चो को मन्त्र दीक्षा देने के बाद प्रवचन करते हुए डा. संध्या प्रकाश ने कहा कि यज्ञोपवीत को व्रतबन्ध कहते हैं। व्रतों से बंधे बिना मनुष्य का उत्थान सम्भव नहीं। यज्ञोपवीत को व्रतशीलता का प्रतीक मानते हैं। इसीलिए इसे सूत्र (फार्मूला, सहारा) भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों में यम-नियम को व्रत माना गया है। उन्होंने बताया कि बालक की आयुवृद्धि हेतु गायत्री तथा वेदपाठ का अधिकारी बनने के लिए उपनयन (जनेऊ) संस्कार अत्यन्त आवश्यक है। धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि जनेऊ धारण करने से शरीर शुद्घ और पवित्र होता है। शास्त्रों अनुसार आदित्य, वसु, रुद्र, वायु, अग्नि, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में माना गया है। अत: उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है। आचमन अर्थात मंदिर आदि में जाने से पूर्व या पूजा करने के पूर्व जल से पवित्र होने की क्रिया को आचमन कहते हैं। इस्लाम धर्म में इसे वजू कहते हैं।

श्री ब्राह्मण सभा ने भगवान श्री परशुराम जयंती पर दो दिवसीय यगोपवित संस्कार कार्यक्रम किया आयोजित

उन्होंने कहा कि स्वार्थ की संकीर्णता से निकलकर परमार्थ की महानता में प्रवेश करने को, पशुता को त्याग कर मनुष्यता ग्रहण करने को दूसरा जन्म कहते हैं। शरीर जन्म माता-पिता के रज-वीर्य से वैसे ही होता है, जैसा अन्य जीवों का। आदर्शवादी जीवन लक्ष्य अपना लेने की प्रतिज्ञा करना ही वास्तविक मनुष्य जन्म में प्रवेश करना है। इसी को द्विजत्व कहते हैं। द्विजत्व का अर्थ है दूसरा जन्म भी है। उन्होंने कहा कि जनेऊ पहनने के धार्मिक महत्व के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी है, वैज्ञानिक दृष्टि से जनेऊ पहनना बहुत ही लाभदायक है। यह केवल धर्माज्ञा ही नहीं, बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अत: इसको सदैव धारण करना चाहिए। डा. संध्या प्रकाश ने श्री ब्राह्मण सभा को इस बात की बधाई देते हुए कहा कि ब्राह्मण का काम समाज को संस्कार देना है औऱ ब्राह्मण सभा ऐसे आयोजनों के लिए बधाई की पात्र है। इस दौरान उन्होंने जनेऊ धारण करने के वैज्ञानिक दृष्टि से माने जाले वाले महत्वों की भी जानकारी दी।

कार्यक्रम के अंत में आए हुए परिवारों का धन्यवाद करते हुए महासचिव श्री सुरेश तिवाड़ी ने कहा कि इस भव्य कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पूरा ब्राह्मण समाज बधाई का पात्र है। इस यगोपवित कर्यक्रम के बाद 22 अप्रैल को श्री ब्राह्मण सभा के प्रांगण में सुबह 8 से 10 बजे तक श्री सुंदर कांड का पाठ करवाया जाएगा और तदोपरान्त सकीर्तन और प्रीति भोज का भी आयोजन किया जाएगा। इस दौरान मंच संचालन करते हुए पार्षद पं. निपुण शर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम संबंधी विस्तृत जानकारी दी। इस मौके पर मेयर शिव सूद, सिटी थाना प्रभारी लोमेश शर्मा, ब्राह्मण सभा अध्य्क्ष कमलेश शर्मा, कृष्ण शर्मा, डा. बिन्दुसार शुक्ला, सुरेश तिवाड़ी, डा. अनिल पुष्प शर्मा, मनोज दत्ता, राहुल शर्मा, कृष्ण गोपाल, अश्विनी शर्मा, मधुसूदन कालिया, अनिल डोगरा, वरुण ऐरी, सोनू जोशी, राजन शर्मा, अरविंद शर्मा, शशि कमल भारद्वाज, सुरेश कपाटिया, सुनील कालिया, विजय मोदगिल, जोगिंदर शर्मा, राजिंदर मोदगिल आदि उपस्थित थे।

* चिकित्सकों अनुसार यह जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है।
* जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है। इसी कारण जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।
* मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसें, जिनका संबंध पेट की आंतों से होता है, आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है, जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय के रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते।
* चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
* वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
* कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
* कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।

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