Editor’s Opinion By Sandeep Dogra
- -बी.ए.एम.एस. प्रथम वर्ष का परिणाम नाममात्र रहने के चलते उठ रहे सवाल
- -शिक्षा में गुणात्मक सुधार का दावा कर रहे यूनिवर्सिटी प्रबंधक और रीवैल्यूएशन के नाम पर विद्यार्थियों से ऐंठी जा रही मोटी रकम
- -एक पेपर के लिए 5 हजार रुपये और अगर पेपर के विषय 2 हैं तो विद्यािर्थयों को जमा करवाने होंगे 10 हजार रुपये
किसी न किसी मुद्दे को लेकर अपने प्रारंभिक काल से ही विवादों में घिरी रही गुरु रविदास आयुर्वेद यूनिवर्सिटी एक बार फिर सवालों के घेरे में है। और ऐसा हाल ही में आए बी.ए.एम.एस. प्रथम वर्ष के परीक्षा परिणाम को लेकर हो रहा है। इससे पहले यूनिवर्सिटी ओ.एम.आर. व उत्तर पुस्तिका खरीद मामले में काफी चर्चित रही और इसके बाद विद्यार्थियों के दाखिलों को लेकर काफी हंगामा हो चुका है और अब परिणाम व रीवैल्यूएशन के नाम पर ऐंठी जा रही मोटी रकम को लेकर सवालों के घेरे में है। परिणाम चाहे जैसा भी रहा हो अगर इस बात को किनारे रख दिया जाए और इसके बाद विद्यार्थियों द्वारा रीवैल्यूएशन करवाने की बात की जाए तो यूनिवर्सिटी द्वारा जो फीस निर्धारित की गई है उससे लगता ही नहीं कि यूनिवर्सिटी ने विद्यार्थियों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा होगा या यह सोचा होगा कि आखिर अभिभावक इस प्रक्रिया के लिए इतनी राशि की व्यवस्था एकदम से कैसे करेंगे व सरकार के आयुर्वेद प्रचार और प्रयार के दावों का क्या? यूनिवर्सिटी द्वारा रीवैल्यूएशन करवाने के लिए एक पेपर की फीस 5 हजार रुपये रखी गई है, यानि अगर एक पेपर के दो विषय हैं तो विद्यार्थी को 10 हजार रुपये की राशि यूनिवर्सिटी में जमा करवानी होगी। इसके बाद ही उसका प्रोसैस शुरू हो पाएगा। अब अगर अन्य यूनिवर्सिटियों की बात की जाए तो यहां बहुत पुरानी व प्रसिद्ध यूनिवर्सिटियों में भी यह फीस एक हजार रुपये से कम रखी गई है ताकि विद्यार्थी के मन की तसल्ली हो सके और अगर भूल से उसके साथ कोई अन्याय हुआ हो तो उसके साथ इंसाफ हो सके। ऐसा कहा जा सकता है कि उनका मकसद विद्यार्थियों से पैसे कमाना नहीं बल्कि शिक्षा प्रदान व विद्यार्थियों के विश्वास को बनाए रखना है। ऐसा तो किसी प्राइवेट यूनिवर्सिटी में भी नहीं है। पर इसके सरकारी यूनिवर्सिटी होते हुए इतनी फीस रखने पर सवाल तो खड़े होंगे ही। मगर विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों का आर्थिक शोषण करने का जो ढंग इस यूनिवर्सिटी ने निकाला है वह तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता, भले ही यूनिवर्सिटी इस पर कोई भी तर्क देती हो। यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली को देख ऐसा लगता है कि इस पर सरकार का कोई नियंत्रण ही नहीं है।
इस यूनिवर्सिटी को कमाऊ पूत की संज्ञा देने लगे लोग
जब यह यूनिवर्सिटी होशियारपुर में स्थापित हुई तो लोगों को एक आस जगी थी कि सरकार सच में आयुर्वेद के प्रचार व प्रसार के प्रति गंभीर है। पर अब जबकि आए दिन यूनिवर्सिटी विवादों में घिर रही है तो लोग खासे परेशानी से गुजरने को मजबूर हो रहे हैं। और तो और लोग तो अब इसे सरकार का कमाऊ पूत की संज्ञा देने से भी नहीं हिचकिचा रहे। इतना ही नहीं आज मैं खुद इस यूनिवर्सिटी में गया। वहां की कार्यप्रणाली को देखकर मैं उस समय दंग रह गया, जब अधिकारी से मिलने से पहले उनके सेवादार पूछ रहे थे कि आप काम बताओ। उनकी बातों से लग रहा था कि मानो जैसे सेवादार नहीं एजैंट खड़े कर रखे हों। जो जानकारी मुझो चाहिए थी वो तो मुझो क्या दी जानी थी वहां एक के बाद दूसरे कर्मचारी के पास भेज दिया जाता रहा। हार कर मैं वी.सी. साहिब के कमरे में गया। उनसे बातचीत की तो उन्होंने इस मामले में जो कहा उसे मैं ऊपर बयान कर चुका हूं कि गुणात्मक सुधार लाने के लिए सख्ती के साथ चेकिंग करवाई गई है और सुधार के लिए कुछ चीजें जरुरी होती हैं। फीस संबंधी उन्होंने कहा कि यह फैसला एक कमेटी लेती है। इसके बाद उन्होंने मुझो कंट्रोलर आफ एग्जामिनेशन के.पी. सिंह के पास भेज दिया। अपना परिचय देने उपरांत उन्होंने पहले तो जानकारी मांगने का कारण पूछा और फिर गोपनीयता का हवाला देते हुए जानकारी देने से ही इंकार कर दिया। अगर मैं गलत नहीं हूं तो यह हम सभी जानते हैं कि जब परीक्षा का परिणाम ही घोषित हो गया तो गोपनीयता कैसी। काफी देर बातचीत उपरांत मैनें महसूस किया कि सिंह साहिब को मेरे साथ बात करने में भी तकलीफ महसूस हो रही है। उनके बात करने के ढंग से ऐसा लग रहा था कि मैं उनके पास आया ही क्यों हूं। मैंने सोचा विद्यार्थी व उनके अभिभावक सच ही कहते हैं कि यूनिवर्सिटी में उनकी सुनवाई नहीं। जहां का स्टाफ व अधिकारी एक समाचार पत्र के एडिटर के साथ इस तरह का व्यवहार कर सकते हैं तो आम लोगों को यह क्या समझाते होंगे इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। खैर मैं उनका आभार व्यक्त करके वहां से बाहर आ गया। सरकार भले ही आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकल्पों पर कार्य कर रही हो और प्राइवेट से अधिक सरकारी यूनिवर्सिटियों में सुविधाओं के दावे करती हो, मगर आज उक्त यूनिवर्सिटी में जाकर मुझो एहसास हुए कि सरकार को जमीनी स्तर पर कार्य करने और यूनिवर्सिटी के स्टाफ व अधिकारियों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने की कितनी जरूरत है। इतना ही नहीं इस यूनिवर्सिटी को स्थापित करवाने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री व सी.एम. के राजनीतिक सलाहकार तीक्षण सूद से भी अपील है कि वे समय-समय पर इस यूनिवर्सिटी का दौरा करके कार्यप्रणाली में सुधार लाने के निर्देश जारी करें ताकि यहां आने वालों को कोई परेशानी न हो, क्योंकि अगर विद्यार्थी होंगे तो ही यूनिवर्सिटी व कालेज हैं, अगर नहीं तो क्या दीवारों और मैदान को शिक्षा प्रदान की जाएगी इस बात पर गंभीरता से सोचना पड़ेगा।
विद्यार्थियों को दिखाया जा रहा तीन-तीन सप्लियों का डर
सूत्रों से पता चला है कि परिणाम आने के बाद कुछ विद्यार्थी माननीय हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे थे। इसी दौरान जब कालेज प्रबंधकों और यूनिवर्सिटी अधिकारियों को इस बात का पता चला तो अंदर खाते विद्यार्थियों को अगली बार के लिए तीन-तीन सप्लियों के लिए तैयार रहने का डर दिखाया जाने लगा। इससे घबराये विद्यार्थियों ने माननीय कोर्ट का ख्याल ही मन से निकाल दिया और कुछेक रीवैल्यूएशन भरने की तैयारी करने लगे तो कुछेक सप्ली तोडऩे का विचार बनाकर पढ़ाई में ध्यान लगाने लगे हैं। मगर इस परिणाम और रीवैल्यूएशन की फीस ने विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके अभिभावकों की नींद भी उड़ा दी है।