नगर निगम होशियारपुर: कौन चला रहा है, अधिकारी, हाउस या ठेकेदार?

thekedaar-cartoon-nagar-nigam-hoshiarpur-punjab

better-think-harjit-matharu-hoshiarpur-advt

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। होशियारपुर नगर परिषद से जब से नगर निगम बना है तब से इससे जुड़ा कोई न कोई विवाद अकसर ही चर्चा में रहता है। इन दिनों एक बार फिर से निगम अपनी कार्यप्रणाली को लेकर खासी चर्चा में है। एक तरफ जहां न्यू माडल टाउन में विकास कार्यों की आड़ में हुए भ्रष्टाचार का मामला प्रकाश में आने से निगम में हडक़ंप मचा हुआ है वहीं दूसरी तरफ निगम पर काबिज अकाली-भाजपा से जुड़े कई पार्षदों द्वारा यह कहना कि उनके भी काम नहीं हो रहे को लेकर भी कई तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है। किसी का कहना है कि उनकी कर्मचारी नहीं सुनते तो किसी का कहना है कि ठेकेदार अपनी मर्जी से काम कर

Advertisements

रहे हैं। सफाई व अन्य मुद्दों को लेकर हाउस की बैठक में भी खासा हो-हल्ला हुआ। जो बाद में समाचारपत्रों की सुर्खियां भी बना।
अब ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि अगर सत्तापक्ष के भी काम नहीं हो रहे तो आखिर नगर निगम को कौन चला रहा है? क्या इसे हाउस चला रहा है, अधिकारी चला रहे हैं या फिर ठेकेदार? क्योंकि कथित मिलीभगत के इस खेल के मास्टरमाइंड जहां चंद अधिकारी हैं वहीं कई ठेकेदार ऐसे हैं जो अपनी पहुंच के दमपर अपना सिक्का जमाए हुए हैं। और तो और मिली जानकारी अनुसार अधिकतर ठेकेदार सत्तापक्ष की छतरछाया में ही पले-बड़े हुए हैं और आज वे अपने आकाओं को आंखें दिखाने से भी परहेज नहीं करते। ऐसे में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि निगम को आकाओं की मेहरबानी से चंद ‘ठेकेदार’ चला रहे हैं।
गत दिनों एक वार्ड में चल रहे विकास कार्य की गुणवत्ता को लेकर जब लोगों ने आपत्ति दर्ज करवानी चाही थी तो वहां

पर मौजूद ठेकेदार ने लोगों से दो टूक कह दिया था कि जाओ जिससे मर्जी कह दो, ये काम तो ऐसे ही होगा। इतना ही नहीं ठेकेदार द्वारा एक अधिकारी पर हाथ उठाने के मामले की टीस आजतक कुछेक अधिकारियों के दिलों में उठती है और वे चाहकर भी ठेकेदार के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकते व चुप रहने में ही भलाई समझे हुए हैं। सूत्रों की माने तो इस बात को कई पार्षद भी स्वीकार करते हैं कि ठेकेदार अपनी मर्जी से काम करते हैं तथा कई बार तो काम अधूरा छोड़ देते हैं व बार-बार कहे जाने के बाद भी नहीं करते। ऐसे में स्थिति यह उत्पन्न हो जाती है कि पता होने के बावजूद भी उनके खिलाफ खुलकर नहीं बोला जा सकता, क्योंकि अधिकतर तो उनके अपने ही हैं और अगर वे उनके खिलाफ ही बोलेंगे तो विपक्ष को भी हल्ला बोलने का मौका मिल जाएगा, इसलिए ‘इक चुप ते सौ सुख’। मगर इस चुप्पी में जनता का कितना नुकसान हो रहा है इसे समझना शायद जरुरी नहीं समझा जा रहा।
विश्वसनीय सूत्रों की माने तो एक तरफ तो कई छोटे ठेकेदार ग्रुप बनाकर छोटे-छोटे काम लेकर अपनी जीविका चलाने के जुगाड़ में रहते हैं तो कुछेक बड़े ठेकेदार काम तो अलाट करवा लेते हैं, मगर उन्हें पूरा करवाने के लिए मिन्नतें और चक्कर पे चक्कर लगाने पड़ते हैं। हाउस की बैठक में ठेकेदारों पर

narula-lehanga-house-bassi-khawaju-hoshiarpur

चैक लगाने और उन्हें पेमैंट कैसे हो जाती है का मामला भी कमिशनर के समक्ष उठ चुका है। इतना ही नहीं जिस पार्षद के वार्ड में काम होता है उस वार्ड के पार्षद से इस संबंधी कई बार तो कंसैंट भी नहीं ली जाती और अधिकारी अपने स्तर पर ही बिल पास कर दिए जाते हैं, जबकि पार्षदों का कहना है कि अगर उनके इलाके में कोई विकास कार्य हो तो उनसे परामर्श किया जाना जरुरी होना चाहिए कि काम कैसा हुआ है और क्या वे (पार्षद) तथा इलाके की जनता संतुष्ट है। परन्तु ऐसा न करके कथित मिलीभगत से सारा खेल इतनी सफाई से खेला जा रहा है कि सफेदपोश और सफेदपोश होते जा रहे हैं, जबकि निगम की कार्यप्रणाली किसी दूषित हो चुकी है, जिसकी सफाई की तरफ ध्यान दिया जाना जरुरी नहीं समझा जा रहा।

कुछेक पार्षदों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उनके इलाके में कई ऐसे काम हैं जो पास भी हुए, ठेकेदार द्वारा किए भी गए, मगर अधूरे छोड़ दिए गए, अब ठेकेदारों को कहते हैं तो वे सुनते ही नहीं। दूसरी तरफ अगर बात ठेकेदारों की, की जाए तो कुछेक ने बताया कि निगम जो भी काम देती है वे उसे पूरा करते हैं, मगर कई बार पेमैंट समय पर न मिलने के कारण काम पूरा नहीं हो पाता। जिन कार्यों की पेमैंट हो चुकी है पर काम अधूरा है पर कुछेक का कहना है कि ‘भाई साबह

जब सारे बंदे ही आपणे आ तां कम वी हो जू, कर दियांगे कम्म, कई बगारां वी तां झल्ली दियां इहनां दियां’ कम्म नूं लै के बड़ा हो हल्ला करन लग्ग पैंदे आ। गौरतलब है कि निगम द्वारा जो कार्य ठेकेदार को अलाट किए जाते हैं उनकी पेमैंट का करीब 33 प्रतिशत सरकार अपने पास रखती है और काम पूरा होने पर ही अदा करती हैं, परन्तु कई बार बजट न आने के चलते पेमैंट में देरी हो जाती है तथा ऐसे में ठेकेदार कार्यों को करने में असमर्थता जता देते हैं, जबकि ठेका अलाट होने से पहले शर्तों में लिखा होता है कि काम पूरा किया जाएगा। मगर भाई साबह वो सहते हैं न कि ‘सईयां भले कोतवाल तो अब डर काहे का’? अब आप भी सोचीए कि निगम को हाउस चला रहा है, अधिकारी या फिर ठेकेदार?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here