क्रोध एक अग्नि समान है: आचार्य चंद्रमोहन अरोड़ा

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में आयोजित रविवारीय सत्संग के दौरान भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए आचार्य चंद्रमोहन अरोड़ा ने कहा कि किसी भी आश्रम अथवा धार्मिक स्थान पर गुरु व महापुरुषों के पास जाने का तभी लाभ है यदि हम उनसे प्राप्त शिक्षा पर चलें। हम धार्मिक स्थानों पर अधिकतर इस लिए जाते हैं क्योंकि हम शरीर व मन से दुखी हैं। शरीर के रोगों के लिए चिकित्सा से उत्तम योग के सरल साधन है जिन्हें योगी गुरु से सीख कर हम रोग मुक्त हो जाते हैं। मन के दुख अथवा रोग सार्वभौमिक हैं अर्थात यह सभी देश ,कॉल व जीवो के साथ समान रूप से लगे हुए हैं। हमारा मन हर समय चिंता ग्रस्त व मानसिक दुखों से परेशान रहता है तथा इसमें हर समय अच्छे बुरे विचार चलते रहते हैं। मन के दुखों का कारण सार्वभौमिक है। ऐसे ही इन दुखों का निवारण भी सार्वभौमिक है। हम अक्सर कहते हैं कि मन बड़ा शैतान ,चंचल व प्रबल है, परंतु ऋषियों द्वारा रचित वेदों के अनुसार मन एक देव है जो हर समय दिन व रात दूर दूर चला जाता है। यह स्वयं प्रकाशमान है। इसके अंदर वेदों का ज्ञान ओतप्रोत है, इससे ही श्रेष्ठ पुरुष यज्ञ, ज्ञान आदि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त होते हैं। मन ही मोक्ष प्रदान करता है, इसके अंदर उच्च विचार समाहित रहते हैं, परंतु हम कुसंगति व अज्ञान द्वारा इस में बुरे विचार भर लेते हैं जो 84 के बंधन का कारण बन जाते हैं।

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हमें राजसिक व तामसिक विचारों से सावधान रहकर अपने अंदर इन्हें प्रवेश नहीं करने देना चाहिए। बुरे विचारों को मन में लाने अथवा सांसारिक पदार्थों का चिंतन करने को विषय कहते हैं। विषयों का चिंतन करने से उनकी प्राप्ति की इच्छा पैदा हो जाती है, यदि वह मिल जाए तो और वस्तुओं की इच्छा होती है, यदि ना प्राप्त हो या उन में बाधा पड़े तो क्रोध पैदा होता है। क्रोध एक अग्नि समान है। अग्नि के साथ सदा धुआ भी होता है। जिसे हम जीव में समोह कहते हैं। इससे जीव की समृति खत्म हो जाती है। बुद्धि पर अज्ञान छा जाता है तथा जीव का विनाश हो जाता है।

विषयों का मात्र चिंतन करने से हमारा सर्वनाश हो जाता है। विषय का उल्टा प्रभु का चिंतन है। जिससे विषयों के प्रति वैराग्य पैदा होता है तथा प्रभु से राग होता है। इसलिए योग में इसका सहज रास्ता है कि अपरिग्रह का पालन करें। कम वस्तुओं से ,जितनी जीवन यापन के लिए आवश्यक हो, निर्वाह करना चाहिए। जीवन सुखी हो जाएगा , परंतु हम तो काम शत्रु को गले लगाते हैं। मन को विषयों से मुक्त रखने तथा इसमें अच्छे विचार लाने हेतु सदा सद्गुरु की संगत व शरण में रहना चाहिए। इस अवसर पर अमिता जी ने भगवान अब तक तो निभाया है आगे भी निभा देना भजन गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

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