सैया भये कोतवाल, अब डर काहे का: अपराध करके बचना है तो “आका” की शरण जरुरी

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होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। एक तरफ प्रदेश में अपराध पर काबू पाने के लिए पुलिस प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं तो दूसरी तरफ जनता को साफ सुथरा प्रशासन एवं माहौल मुहैया करवाने के दावे करने वाले कई ऐसे नेता हैं जो अपराधियों को संरक्षण देकर उनका पालन पोषण करने में लगे हैं। जिससे समाज में बढ़ते अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। आलम ये है कि कुछेक नेताओं की शह पर बढ़ रहे अपराध को लेकर जहां कई पुलिस अधिकारी काफी परेशान हैं वहीं सरकार द्वारा जनता से किए वायदों को पूरा करने में लगे सरकारी तंत्र को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जिसके चलते अपराधी, अपराध करने उपरांत साफ बच निकलते हैं या फिर आकाओं के संरक्षण के चलते उन पर कार्रवाई नहीं हो पाती।

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होशियारपुर में पिछले दिनों एक कांग्रेसी नेता के बेहद करीबी ने कुछेक दोस्तों की मिलीभगत से घृणा योग्य अपराध को अंजाम दिया। आम तौर पर छोटे-मोटो मामलों में तीव्र गति से कार्रवाई करने वाली पुलिस की चाल इस मामले में इतनी धीमी रही कि अपने आका के संरक्षण में वो समाज में ऐसे सिर उठाए घूम रहा है जैसे अपराध करना उसका हक हो, वैसे भी कहावत है कि जब सैया भये कोतवाल तो अब डर काहे का। लगता है हमारे बुजुर्गों ने ये कहावत हालातों को मद्देनजर रखते हुए ही बनाई होगी, जो आज भी कई लोगों पर पूरी तरह से चरितार्थ होती प्रतीत होती है।

मुंह के मीठे और दिल में कई तरह की बुराईयों को लिए नेता जी की चर्चाएं भी खूब रही हैं तथा अब भी कम नहीं, मगर उनके चहेते भी उसी डर्रे पर चलेंगे, इसकी किसी ने उम्मीद भी न की थी। दवाब में काम करने वाले पुलिस अधिकारियों का हाल भी देख लीजिए एक साधारण व्यक्ति द्वारा जुल्म करने पर पुलिस का गुस्सा उस पर ऐसे टूट पड़ता है जैसे उसने देशद्रोह जैसा बड़ा जुल्म कर दिया हो, मगर जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसे मामलों में पुलिस को न जाने क्या सांप सूंध जाता है कि उसके बारे में पूरी जानकारी देने से भी गुरेज करती है।

गल्त काम नहीं छोड़ेंगे, आका बदल लेंगे

शहर में एक शख्स तो साहिब ऐसे हैं जिनके बारे में लगभग समस्त नेताओं एवं अधिकारियों को पता है कि वो किस-किस प्रकार के गल्त कार्यों में संलिप्त है, मगर आकाओं की शरणागत होते ही उसे मानो जैसे पाक साफ होने का लाइसैंस मिल जाता है। ऐसा नहीं है कि उसके समस्त आका एक जैसे हैं, मगर जनाब के पास एक ऐसा पैंतरा है जिसे आजमाते ही वो कानून के हाथों से बच निकलता है। एक नेता जी ने मना किया तो क्या हुआ, दूसरे नेता जी को आका बना लेते हैं। कहीं न कहीं कोई न कोई नेता तो ऐसा होगा जो उसे संरक्षण देगा तथा संरक्षण मिलते ही उसके कथित तौर पर किए जाते गैरकानूनी धंधे जोर शोर से शुरु हो जाते हैं तथा धंधे भी ऐसे हैं जो हमारी युवा पीढ़ी को गर्त में धकेलने का काम कर रहे हैं। जिस पर नकेल कसी जानी समय की मांग है तथा आका बनने वाले नेताओं को चाहिए कि वे समाज, प्रदेश और देश की भलाई के लिए ऐसे किसी इंसान को संरक्षण न दें जो समाज विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हो।

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हालांकि आज भी कई अधिकारी और कर्मी ऐसे हैं जो न्याय का साथ देने से पीछे नहीं हटते, मगर ऐसे अधिकारियों को एक स्थान पर अधिक देर टिकने भी तो नहीं दिया जाता तथा उनका तबादला करवाकर आका नुमा नेता अपने चहेतों और कहनेकार को तैनात करवा लेते हैं। ऐसे में एक साधारण आदमी को न्याय मिलने की जो थोड़ी बहुत उम्मीद होती भी है, वो भी धूमिल हो जाती है तथा वे दर-दर भटकने उपरांत मन मसोस कर बैठ जाता है।

वैसे एक बात है होशियारपुर में घटित हुई घटना को लेकर राजनीतिक एवं सामाजिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार तो बहुत गर्म है, मगर अब नेता जी के खिलाफ बोलने तथा पुलिस को न्याय का साथ देने की बात कहने की हिम्मत करे भी तो कौन। क्योंकि बिल्ली के गले में घंटी बांधने की सलाह तो सभी देते हैं, पर खुलकर चलने से परहेज कर अपने काम से काम रखो की सलाह भी दे देते हैं। जिसके चलते अपराधियों के हौंसले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। एक तरफ जहां अपराधियों को शरण देने वाले नेताओं के कारण अपराध बढ़ रहा है वहीं पुलिस पर से भी जनता का विश्वास उठना स्वभाविक ही है।

भले ही आला अधिकारी अपराध के मामले में पूरी कार्रवाई किए जाने की बात करते हों, मगर छोटे स्तर पर कथित तौर पर मिलीभगत और मन चाहा स्टेशन लेने की चाहत में अपराध व अपराधियों पर कार्रवाई के नाम पर हो रही खानापूर्ति इन दिनों खूब सुर्खियां बटौर रही है।

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