चिंताजनक: समाज और देश के लिए धीमा जहर है सरकारीतंत्र का बढ़ता निजीकरण

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देश वासियों में सुरक्षा की भावना पैदा करने और उनके सामाजिक अधिकारियों की सुरक्षा के लिए संविधान में व्यवस्थित सरकारी तंत्र का एक सोची समझी योजना के तहत धीमे जहर की तरह हो रहा निजीकरण देश व समाज दोनों के लिए घातक सिद्ध होने वाला है, इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। देश में आरक्षण और अन्य ज्वलंत मुद्दों की तरह ही ये मुद्दा भी इन दिनों खासा चर्चा का विषय बना हुआ है कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भागती हुई हर क्षेत्र का निजीकरण जिस योजना के साथ कर रही है, उससे आम जनता में असुरक्षा का भाव उत्पन्न हो रहा है, जोकि आने वाले समय के लिए घातक ही सिद्ध होने वाला है।

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अंग्रेजों द्वारा देश को गुलाम बनाए जाने उपरांत अंग्रेजों ने सरकारी तंत्र की स्थापना करते हुए जो व्यवस्था लागू की थी उसी पर आजतक देश चलता आ रहा था तथा उस व्यवस्था से लोगों में आजादी के बाद अब तक सुरक्षा का भाव था, जैसे सरकारी नौकरी, पैंशन, स्वास्थ्य सुविधा, बच्चों की शिक्षा, व्यवसाय को बढ़ावा देने की योजनाएं आदि। हो सकता है कई लोग मेरे मत से सहमत न हों, क्योंकि अंग्रेजों ने अधिकतर व्यवस्थाएं एवं नियम अपनी सुविधा के लिए बनाए थे, जिसके चलते देश वासियों को अपमान के साथ-साथ अत्याचार भी सहना पड़ता था।

मगर मौजूदा समय में भी अगर हालातों पर नजऱ दौड़ाएं तो जहां सरकारों को सरकारी तंत्र की व्यवस्था को मजबूत बनाना चाहिए, उसके उल्ट निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, या यूं कहें कि निजीकरण के माध्यम से जनता का शोषण बढ़ रहा है, क्योंकि निजीकरण में न तो काम की सुरक्षा, न पैंशन, न स्वास्थ्य लाभ और न ही छुट्टी आदि का कोई प्रावधान। कंपनी मालिक या ठेकेदार की मर्जी पर निर्भर करता है कि वो अपने वर्करों को कितना सम्मान व आर्थिक लाभ के साथ-साथ जीवन की सुरक्षा मुहैया करवाती है। सरकारों द्वारा अपनी जिम्मेदारी को निभाने के स्थान पर निजीकरण के हाथों सरकारी व्यवस्था सौंपकर लोगों में असुरक्षा का भाव जाग्रत किया जा रहा है। जिसके चलते देश में एक अलग ही माहौल पनपने लगा है।

जिन देशों को देखकर देश में विदेशी व्यवस्थाएं लागू की जा रही हैं उनके इनफ्रास्टरक्चर और हमारे इनफ्रास्टरक्चर में जमीन आसमान का फर्क है तथा हमारी और उनकी जनसंख्या तथा शिक्षा व अन्य संसाधनों की कमी को भी मद्देनजऱ रखा जाना जरुरी है। मगर आलीशान ए.सी. कमरों में बैठकर और शॉकप्रूफ कारों में बैठकर पॉलसियों को निर्माण करके उन्हें लागू करने वाले शायद ये भूले बैठे हैं कि आज भी हमारे देश में लाखों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं और उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने के स्थान पर चंद प्राइवेट कंपनियों और ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए देश की व्यवस्था को अव्यवस्था में बदला जा रहा है।

पढ़ लिख जाने के बाद देश के नौजवान प्राइवेट कंपनियों में शोषण का शिकार हो रहे हैं, ऐसा नहीं है कि प्राइवेट कंपनियों में वेतन की कोई कमी है, मगर नौकरी की सुरक्षा की गारंटी कोई नहीं लेता। जिसके चलते व्यक्ति पर काम विहीन होने की तलवार हर समय लटकती रहती है तथा हर काम का टारगेट बेस होने के चलते कर्मचारी सदैव मानसिक परेशानी से गुजरते हैं तथा इसके चलते कई लोग गलत रास्ता अपनाकर पैसा कमाने के रास्ते पर चल पड़ते हैं, जिससे समाज में अराजकता फैलाने वाले और अपराधिक छवि वाले लोगों का जन्म होता है तथा समाज में शांति की जगह अशांति जन्म लेती है।

इसलिए सरकारों को चाहिए कि वे सरकारी तंत्र को मजबूत करने और देश वासियों में सुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए निजीकरण के बढ़ते हुए धीमे जहर को कम करें और देश वासियों खासकर युवाओं को रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने के लिए प्रयासरत हों तथा सरकारी कार्यालयों में रिक्त पड़े पदों को भरने के साथ-साथ नए पदों की व्यवस्था की जाए ताकि युवा वर्ग गलत रास्ते पर जाने की बजाए देश सेवा में लग कर देश को तरक्की के रास्ते पर और भी तेजी के साथ अग्रसर कर सके। बातें तो और भी बहुत सारी हैं, मगर लिखने बैठूंगा तो शायद पन्ने और शब्द कम पड़ जाएं, थोड़े कहे को ज्यादा समझें तथा देश को आज़द करवाने की तरह आज एक बार फिर से देश में फैल रही अव्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए हम सभी को देश भर में जात-पात और धर्म के बंधन से ऊपर उठकर आंदोलन छेडऩा होगा ताकि सोई सरकारों का ध्यान इस गंभीर समस्या की तरफ लाकर इसका कोई ठोस हल निकाला जा सके।

 

संदीप डोगरा
संपादक, द स्टैलर न्यूज़

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