वृंदावन(द स्टैलर न्यूज़)। सदियों से चली आ रही मान्यता के अनुसार हरिद्वार कुंभ से पहले वैष्णव संप्रदाय के संत-महापुरूषों का आध्यात्मिक संगम के रूप में होने वाली कुँभ बैठक का शुभारंभ वसंत पंचमी को वृंदावन के यमुना तट पर हो गया है। कृष्ण नगरी वृंदावन में ध्वजारोहण के साथ वैष्णव कुंभ का आजाग हो गया है जोकि, 40 दिन तक चलेगा। यह कुंभ मेला बसंत पंचमी के अवसर से शुरू होता है।
यह माना जाता है कि वृंदावन श्री राधा-कृष्ण के प्रेम की भूमि है और यहां रसिक भाव से भगवान की अराधना कीजात ीहै यही कारण है कि वृन्दावन के कुंभ में शैव, सन्यासी नहीं आते।
इस मेले में वैष्णव साधु संतों का आगमन होता है, जिनका प्रमुख केन्द्र ब्रज, वृंदावन और अयोध्या है। इस कुंभ में करीब 50 हजार साधुओं के एकत्रित होने की संभावना है तथा सुरक्षा के लिए भी कड़े प्रबंध किए गए हैं। गत मंगलवार को यमुना नगर के किनारे कुंभ मेला शुरू हो गया है। इस कुम्भ का पहला शाही स्नान 27 फरवरी को हुआ था, दूसरा स्नान फाल्गुन एकादशी 9 मार्च को और तीसरा फाल्गुन अमावस्य 13 मार्च को होगा। वहीं, शाही परिक्रमा 25 मार्च को रंगभरनी एकादशी के दिन दी जाएगी।
वृंदावन कुंभ के पीछे मान्यता है कि जब समुद्र मंथन हुआ था तब उसमें से निकले अमृत कलश को लेकर गरूड़ जी चले थे। जब वह वृंदावन पहुंचे तब उन्होंने कदम्ब वृक्ष पर उस अमृत कलश को रख दिया और विश्राम करने लगे। विश्राम करने के बाद गरूड़ जी उस कलश को लेकर नासिक, उज्जैन, प्रयागराज, हरिद्वार गए। जहां अमृत कलश से बूंद झलकने के कारण वहां कुम्भ लगने लगा।