भारत भूमि पर बेटी को लक्ष्मी का रूप कहा जाता है: साध्वी श्वेता भारती

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: मुक्ता वालिया। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के द्वारा शिव मंदिर प्रगति नगर नजदीक डी.ए.वी कॉलेज होशियारपुर में तीन दिवसीय भगवान शिव कथा का आयोजन किया गया। कथा के दूसरे दिन में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री श्वेता भारती जी ने सती देह प्रसंग का वर्णन किया। साध्वी जी ने बताया कि माता सती ने अपने आपको यज्ञ में भसमीभूत कर दिया।

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परन्तु उससे पहले वह शिव भगवान के चरणों में प्रार्थना करती है कि अगले जन्म मे वह ही उन्हें पति रूप में प्राप्त हो। अगले जन्म में माता सती हिमालय राज व मैना के यहां पुत्री रूप में जन्म लेती है। उनके जन्म लेने पर सारा हिमालय नगर आंनद के सागर में डूब गया। साध्वी जी ने बताया कि पुत्री के जन्म लेने पर उनके माता-पिता की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। पंरतु आज के परिवेश में पुत्री को जन्म लेने से पहले ही मां के गर्भ मे दफना दिया जाता है।

वह कन्या जिसे भारत भूमि पर लक्ष्मी का रूप कहा जाता है और नवरात्रों मे नन्ही नन्ही कन्याओं की पूजा होती है। उसी भूमि पर आज नारी को जन्म लेने का अधिकार नहीं दिया जाता। वह देश विकास कैसे करेगा। स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि मेरे देश में नारी प्रार्थना के योग्य है क्योंकि प्रार्थना से विश्व की एक नई आत्मा का प्रार्दुभाव होता है। यह आत्मा ही किसी राष्ट्र की सार्थक सम्पति है।

मेरे देश में स्त्रियों मे उतनी ही साहसिकता है जितनी की पुरूषों में। सभी उन्नत राष्ट्रों ने स्त्रियों को समुचित सम्मान देकर ही अपने राष्ट्रीय गौरव को विकसित किया है। जो देश या राष्ट्र स्त्रियों का आदर नहीं करते वे कभी बड़े नहीं हो पाते हैं, और न भविष्य में कभी बड़े होंगे। हमारे देश के वर्तमान पतन का मुख्य कारण है कि हमने शक्ति की इन सजीव प्रतिमाओं के प्रति आदर की भावना नही रखी। मनुस्मृति मे मनु जी भी कहते हैं कि जहां नारी को पूजा जाता है वहां देवताओं का निवास होता है। जहां पर नारी का सम्मान नहीं वहां भूतों का निवास होता है। अत: अपनी धारणाओं को त्याग करो कि पुत्र ही कुल का तारक है। अपनी बेटी को बेटे के समान ही प्यार दें, संस्कार दें, क्योंकि संस्कारी संतान ही माता पिता का नाम रौशन कर सकती है। प्रभु की कथा ने कितने ही जीवों के जीवन को निर्मल किया है। यदि मानव भगवान शिव के चरित्र से प्राप्त शिक्षा व संदेश को जीवन में धारण करले तो नि:संदेह एक आदर्श मानव का निर्माण होगा।

जब एक आदर्श मानव का निर्माण होगा तब एक आदर्श परिवार का गठन होगा। यदि एक आदर्श परिवार का गठन होगा तो एक आदर्श समाज ,आदर्श राष्ट्र अंततागत्वा एक आदर्श विश्व स्थापित होगा। परन्तु विडम्बना का विषय है कि आज कितनी ही प्रभु की गाथाएं गाई जा रही है पर समाज की दशा इतनी दयनीय है कि मात्र केवल प्रभु की कथा को कह देना या सुन लेना ही पर्याप्त नहीं है। प्रभु के चरित्र से शिक्षा ग्रहण कर उसका जीवन में अनुसरण करना होगा। अंत में साध्वी बहनों ने सुमधुर भजनों के गायन से उपस्थित प्रेमियों को आनन्द विभोर किया। कथा का समापन विधिवत प्रभु की पावन आरती से किया गया।

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