. . .आखिर क्यों तिलमिला उठे भाजपा नेता ?

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Editor’s Opinion By Sandeep Dogra

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-गुरू रविदास आयुर्वेद यूनिवर्सिटी की मान्यताओं को स्पष्ट करवाने के स्थान पर कांग्रेसी विधायक के बयान की आलोचना को दी प्राथमिकता बना चर्चा का विषय-
होशियारपुर: गुरू रविदास से पढ़ाई करने के उपरांत सैंटर कौंसिल आफ इंडियन मैडिसन से मान्यता को लेकर अधर में लटके विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर चल रहे मामले में इतने दिनों से भाजपा नेताओं की तरफ से एक भी बयान जारी नहीं हुआ। मगर जैसे ही एक कांग्रेसी विधायक ने यूनिवर्सिटी की मान्यता और इसे चुनावी स्टंट की बात कही कुछेक भाजपा नेता पूरी तरह से तिलमिला उठे। उन्हें शायद इस बात का दुख लगा कि आखिर कांग्रेसी विधायक बच्चों की हिमायत में क्यों उतर आए और उन्होंने इतनी कड़वी बातें कैसे कह दी। कठनि पढ़ाई और लाखों रूपये खर्च करके अपे उज्ज्वल भविष्य के सपने देखने वाले विद्यार्थियों को जब डिग्री थमाई गई तो डिग्री के पीछे प्रैक्टिस नहीं कर सकते कमैंट लिखा गया था। ऐसे में विद्यार्थी अपने को पूरी तरह से ठगा सा महसूस कर रहे थे और उन्होंने यूनिवर्सिटी का घेराव किया। जब विद्यार्थियों ने घेराव किया तो उस समय तो कोई भाजपा नेता उनकी हिमायत में नहीं आया। मगर कांग्रेसी विधायक सुन्दर शाम अरोड़ा द्वारा बच्चों के साथ न्याय की बात कहना इन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा। अगर इन्हें यूनिवर्सिटी व बच्चों की इतनी चिंता होती तो अब तक बच्चों को इंसाफ दिलाने के लिए आगे बढ़ते। मगर कांग्रेसी विधायक के बयान पर राजनीति को हवा देने के सिवाये इन्होंने कुछ नहीं किया। जबकि इन्हें यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली की पूरी जानकारी हासिल करके त्रुटियों को दूर करवाने के प्रयास करने चाहिए थे। मगर भाजपा नेताओं का विधायक के बयान पर प्रतिक्रया देने से यह साफ संदेश जनता के बीच गया है कि कहीं न कहीं भाजपा नेता यूनिवर्सिटी अधिकारियों के किए धरे पर पर्दा डालने का प्रयास कर रहे हैं। जबकि असलीयत क्या है इससे सभी वाकिफ ही हैं। सूत्रों की मानें तो यूनिवर्सिटी में एक बड़े पद पर तैनात एक अधिकारी की संघ में जड़े काफी मजबूत होने के चलते कोई भी उसके खिलाफ बोलने से परहेज करने में ही भलाई समझता है, क्योंकि यह बात तो हम सभी जानते हैं कि जो संघ के साथ जुड़ा हो अथवा जिसका संघ के अधिकारियों के साथ मेलमिलाप हो उसके खिलाफ बोलने का जोखिम भाजपा का कोई नेता शायद ही उठाए। मगर यहां मुद्दा विद्यार्थियों के भविष्य से जुड़ा है और ऐसे में संघ के अधिकारी भी यह नहीं चाहेंगे कि संघ के एक कार्यकर्ता की कथित मिलीभगत के चलते हजारों बच्चों का भविष्य अधर में लटके। जैसा कि मैं पहले भी आपको बता चुका हूं कि यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली को सही और पारदर्शी बनाने के लिए अभी बहुत से प्रयास किए जाने बाकी हैं। वहीं अधिकारी वर्ग पर पैनी नजर रखी जानी भी बेहद जरूरी है। यहां तक कि वहां तैनात कर्मियों की तैनाती संबंधी भी अधिकारियों को पारदर्शिता से पर्दा उठाना चाहिए। मैंने भी कांग्रेसी विधायक का बयान पढ़ा है और मुझे ऐसे लगता है कि उनके बयान में थोड़ा बहुत राजनीतिक रंग जरूर रहा था पर उन्होंने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न किए जाने की बात पर अधिक बल दिया था। परन्तु यह बात समझ से परे हो जाती है कि विधायक के बयान पर खुद राजनीति करने वाले भाजपा नेता आखिर जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं। यहां सवाल यह पैदा होता है कि सरकारी नीतियों के चलते पहले ही जनता की किरकिरी सह रहे भाजपा नेता अगर जनता के सच्चे हिमायती हैं तो यूनिवर्सिटी से जुड़े सारे मुद्दे व उसे मिली मान्यताओं संबंधी पूरी जानकारी लेकर जनता के बीच जाएं ताकि यूनिवर्सिटी से पढ़े लिखे युवा अपने भविष्य को सुरक्षित महसूस कर सकें और भविष्य में भी यहां दाखिला लेकर खुद को सुरक्षित महसूस करें। अगर वे ऐसा नहीं कर सकते तो उन्हें जनता के जख्मों पर नमक छिडक़ने का भी कोई अधिकार नहीं।

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