बाबा बड़भाग सिंह जी की तपस्थली मैड़ी में मिलती है मानसिक रोगों से मुक्ति

अम्ब (द स्टैलर न्यूज़)। देवी देवताओ, तपस्वियों की देव स्थलियों के लिए देवभूमि के नाम से विख्यात पर्वतीय प्रदेश हिमाचल विश्व स्तर पर विशिष्ट पहचान रखता है। इन देवस्थलों पर लगने वाले मेले हमारी प्राचीन परम्पराओं के अनुकरण की अनूठी मिसाल कहे जा सकते हैं। हिन्दू सिख एकता का प्रतीक ऐसा ही एक देवस्थल अम्ब उपमण्डल मुख्यालय से मात्र दस किलोमीटर दूरी पर डेराबाबा बड़भाग सिंह (मैड़ी साहिब) के नाम से लाखों सिख श्रद्धालुओं की अटूट आस्था एवम् भक्ति की भावना की मिसाल बनता है। डेरा बाबा बड़भाग सिंह जी की तपस्थली मैड़ी साहिब की गिनती उत्तर भारत के धार्मिक स्थलों में शुमार है। यह पवित्र तपस्थली सोढी सन्त बाबा बड़भाग सिंह की तपस्थली है। इस ऐतिहासिक देवस्थली के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि लगभग 300 वर्ष पूर्व बाबा राम सिंह के सुपुत्र सन्त बाबा बड़भाग सिंह करतारपुर पंजाब से आकर यहां बसे थे। जिसके पीछे अफगानी अहमद शाह अब्दाली के करतारपुर पर लगातार हमले उन्हें क्षुब्ध कर रहे थे।

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अब्दाली के तेहरवें हमले से क्षुब्ध बाबा जी को मजबूरन करतारपुर त्यागकर पहाड़ों की और देवभूमि की तरफ आना पड़ा। जब बाबा जी हरे भरे प्रकृति से ओत प्रोत क्षेत्र मैड़ी क्षेत्र में दर्शनी खड्ड के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि अब्दाली की अफगान फौजें उनका पीछा करते काफी नजदीक पहुंच चुकी हैं। इस पर बाबा जी ने पत्नी आध्यात्मिक शक्ति से दर्शनी खड्ड में जलावेग को बढ़ाकर बाढ़ ला दी। जिसके परिणामस्वरूप अफगान फ़ौज को निराश होकर लौटना पड़ा। ततपश्चात बाबा जी इस क्षेत्र में तपस्या में लींन हो गए। उस समय यह क्षेत्र वीरान होता था। इस क्षेत्र में एक प्रेतात्मा का आतंक था। जो भी इस क्षेत्र में प्रवेश करता था। यह प्रेतात्मा उसे अपने वश करके यातनाएं दिया करती थी। जिसके कारण क्षेत्र में प्रेतात्मा के प्रभाव से कई लोग मानसिक रूप से बीमार, पागल होकर उसके वश में थे। जब बाबा जी तपस्या में लीन थे तो इस प्रेतात्मा ने उन्हें भी अपने वश में करने के लिए यत्न करने शुरू कर दिए। लेकिन उसे सफलता नही मिल पाई। प्रेतात्मा द्वारा बार बार बाबा जी की तपस्या में विघ्न डालने के परिणामस्वरूप बाबा जी तथा प्रेतात्मा में भयंकर लड़ाई शरू हो गयी। इस दौरान बाबा जी ने प्रेतात्मा को अपने तपोबल से चित कर कील दिया। प्रेतात्मा को बाबा जी ने वश में करके पीडि़तों, दीन दुखियों की सहायता के लिए कहा। प्रचलित है कि बाबा जी ने प्रेतात्मा को प्रेतात्माओं से दुष्प्रभाव से पीडि़तों को रोग मुक्त करने के लिए कहा तथा स्वयं तप में लीन हो गए। दिव्य तेज के धनी बाबा जी अपने तप के बल से अपनी देह को धरती पर छोडक़र आत्मा को स्वर्ग लोक में विचरने के लिए भेज देते थे। कुछ समय पर आत्मा शरीर में पुन: प्रवेश कर जाती थी। एक बार आधात्मिक शक्ति के बल से बाबा जी आत्मा शरीर छोडक़र स्वर्ग लोक में गयी हुई थी। जोकि कई दिनों तक वापिस नही लौटी थी।इस पर उनके परिवार जनों ने उन्हें मृत समझकर अंतिम संस्कार कर दिया जबकि समाधि में बैठने से पूर्व बाबा जी परिवारवालों को कह गए थे कि उनके शरीर को बिल्कुल न छुआ जाए। काफी दिनों के बाद बाबा जी की आत्मा देह में प्रवेश करने आई तो देह को न पाकर उसे काफी निराशा हुई। वह इधर उधर घूमकर जब वापिस जाने लगी। तब बाबा जी के परिजनों को अपनी भूल का एहसास हुआ तथा किये पर पछतावा होने लगा। अपनी धर्मपत्नी को विलाप करते हुए देखकर बाबा जी को बड़ी दया आई तो उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को रोज मिलने का वचन इस शर्त पर दिया कि वह रोज गोबर से स्थान लीपा करेगी तथा जब तक गोबर नहीं सूखेगा तब तक (बाबा जी) उनकी आत्मा उनके संग रहेगी। यह सिलसिला काफी समय चलता रहा। जब गर्मियों का मौसम आया तो गोबर जल्दी सूखने लगा। इस कारण बाबा जी की आत्मा जल्दी लौटने लगी। उनकी धर्मपत्नी से यह विछोड़ा सहन नही हुआ। इस लिए उन्होंने एक दिन बाबा जी की आत्मा को अपने पास लम्बे समय तक रखने की युक्ति बनाई। जिसके लिए उन्होंने गोबर में ऐसी वस्तु (स्थानीय भाषा में लेस कहा जाता है) डाली कि जिसमे लीपा गया गोबर काफी समय तक नम व गीला रहा।
बाबा जी की आत्मा अपनी पत्नी के इस कर्म को देखकर क्षुब्ध हुई तथा आगे से अपनी धर्मपत्नी से नही मिलेंगे। इस निर्णय से उनकी धर्मपत्नी ने क्षमायाचना की तथा बाबा जी से कभी न मिलने के कठोर निर्णय को बदलने की विनंती की। उनकी विनती तथा विलाप को देखकर बाबा जी का हृदय द्रवित हो उठा। बाबा जी ने अपनी धर्मपत्नी को वचन दिया कि वह भविष्य में साल में एक दिन होली के वाले दिन पूरा समय आकर उनके संग रहा करेंगे व उसी दिन भूत प्रेतात्माओं के प्रभाव से ग्रस्त सांसारिओं को इस पीड़ा से मुक्ति दिलाएंगे। तभी से इस धारणा को मानकर लाखों लोग इस पवित्र स्थली में आकर नतमस्तक होते है तथा अपने कष्टों का निवारण करके सुखी घरों को लौटते हैढ्ढ मैड़ी साहिब में पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र बिंदु बाबा बड़भाग सिंह जी की तपस्थली एवं पवित्र हरा भरा बेरी का पेड़ है। जहां पहुंचकर “जो बोले सोनिहाल, सत श्री अकाल” के कर्णप्रिय जैकारे की गूँज बाबा जी के प्रति पहुंची संगतों की अखण्ड आस्था की अनूठी मिसाल कहा जा सकता है। इस पेड़ के साथ संगते डोरी बांधकर मनोकामना पूर्ति की कामना करते है। पावन चरण गंगा की जलधाराओं में स्नान का भी विशेष महत्व है। इस पावन देवस्थली में मानसिक रोगियों को भूत प्रेतात्मा के दुष्प्रभाव से रोग मुक्त करने के लिए टोलियों में बिठाकर पारम्परिक एवं आधात्मिक विधी द्वारा विशेष सेवकों, जिन्हें “मसंद” कहा जाता है द्वारा भूतप्रेत से छुटकारा दिलाया जाता है। प्रेतात्मा के प्रभाव से पीडि़त तथा मानसिक रोग से पीडि़त को “डोली” कहा जाता है।मसंद टोलियों में बैठे रोगीओं को दुष्ट आत्माओं के प्रभाव से मुक्ति दिलाने के लिए अहम भूमिका निभाते हैं। मान्यता है कि पावन चरण गंगा की जलधाराओं में स्नान से प्रेतात्माओं का कभी प्रभाव नही पड़ता। श्रद्धालु घरों को चरण गंगा का जल भी लेकर जाते हैं। बाबा बड़भाग सिंह के दरबार में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, अमृतसर, गुरदासपुर, राजस्थान विदेश से भी श्रद्धालु आकर अपने व अपने परिवार की कुशलता तथा मनोकामनाओं से झोली भरकर घरों को वापिस लौटते हैं। समय के साथ मैड़ी साहिब में आने बाले श्रद्धालुओं की बढ़ती तादाद उनकी बाबा बड़भाग जी के प्रति उनकी अटूट भक्ति की परिचायक कही जा सकती है।

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