प्रशासन चाहता तो शांतमयी ढंग से निपट सकता था मामला?

DSC08302होशियारपुर। आज शहर में आरक्षण के विरोध और समर्थन में जो भी हुआ उसे लेकर प्रशासन की कार्यप्रणाली शहर व आसपास के इलाकों में चर्चा का विषय बनी हुई है। अगर प्रशासन चाहता तो ऐसी नौबत आने ही न देता। मगर माहौल को खराब करने के लिए चंद तथाकाथित नेताओं के आगे प्रशासन बौना व असमर्थ दिखाई दिया। एक तरफ तो सभी वर्ग संविधान का हवाला देकर संवैधानिक तौर पर अपनी बात रखने का दम भरते हैं तो दूसरी तरफ संविधान के खिलाफ जाने में भी अपनी भलाई समझते हैं। आज जो शहर में हुआ उसमें दोनों तरफ कुछ ऐसे लोग पाए गए जिन्होंने मामले को राजनीतिक रंगत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि आरक्षण विरोधी रैली का विरोध करने पहुंच कुछ लोग हथियारों से भी लैस थे, जिनमें डंडे व तेजधार हथियार भी शामिल थे तथा पुलिस ने कुछेक युवकों से डंडे इत्यादि प्रदर्शन दौरान लिए भी। मगर सवाल है कि जब प्रशासन को पहले से ही इस बात की खबर मिल चुकी थी तो उसने सारा प्रबंध पहले क्यों नहीं किया, क्यों नहीं उसने दोनों पक्षों को बुलाकर उनकी बैठक करवाकर सभी को संवौधानिक तरीके से अपनी बात रखने की बात समझाई।

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-अगर प्रशासन चाहता तो दोनों पक्षों की बैठक करवाकर उन्हें संवैधानिक तरीके से अपनी-अपनी बात रखने को कर सकता था राजी-

इतना ही नहीं जब फ्रंट ने पहले ही अपने कार्यक्रम की जानकारी प्रशासन को दे दी थी तो उसने दूसरे पक्ष को प्रदर्शन करने की आज्ञा क्यों दी, अगर बिना आज्ञा कार्यक्रम किया गया तो उसने कानून तोडऩे वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं की। अगर उसे फ्रंट का कार्यक्रम गलत लगता था तो उन पर कार्रवाई नहीं की गई। आज जो हुआ उसे लेकर प्रशासन की पीठ नहीं थपथपाई जा सकती कि उसने शांतमयी ढंग से मामले को निपटाने का काम किया। बल्कि प्रशासन के इस रवैये से दोनों वर्गों में नफरत का जो बीज बोया गया उसकी जिम्मेदारी किसी होगी यह तय किया जाना बेहद जरुरी है। मगर मामले को निपटाने के स्थान पर ज्यादातर अधिकारी तो अपने अधिकारियों के संपर्क में रहे और बिचौलियों को तलाशते रहे ताकि मामले को निपटाया जा सके व किसी न किसी तरह से फ्रंट के सदस्यों को जिलाधीश के कार्यालय में जाकर मांगपत्र दिए जाने की बात मनवाई जा सके। दूसरी तरफ एस.एस.पी. ने दूसरे पक्ष के पास पहुंच कर मांगपत्र लिया। अगर प्रशासन चाहता तो जिलाधीश के स्थान पर एस.एस.पी. फ्रंट के पास पहुंच कर भी मांगपत्र ले सकती थी और मामला शांत किया जा सकता था, भले ही फ्रंट जिलाधीश को मांगपत्र देने की बात पर अड़ा हुआ था, मगर उसे राजी किया जा सकता था। क्योंकि एस.एस.पी. भी कोई छोटा अधिकारी तो होता नहीं है। परन्तु प्रशासन द्वारा ऐसा प्रयास करना जरुरी नहीं समझा गया। आरक्षण विरोधी रैली का विरोध कर रहे अधिकतर बुद्धिजीवीयों का कहना था कि वे रैली का विरोध करने जरुर आए हैं, मगर उनका टकराव का कोई इरादा नहीं है। अब वहां पर कुछ तथाकथित नेताओं ने माहौल को टकराव जैसा बना दिया व प्रदर्शन में शामिल होने के चलते उन्हें भी उसी हवा के साथ बहना पड़ा, क्योंकि आरक्षण उनका अधिकार है व अगर कोई इसका विरोध करेगा तो उन्हें ठेस तो पहुंचेगी, मगर टकराव नहीं। दूसरी तरफ फ्रंट में कुछ गर्म ख्यालात के लोगों द्वारा बैरीकेट को तोडऩे के प्रयास किए गए, मगर संघर्ष करके जनरल कैटागिरि के लिए हक प्राप्ति करने वाले कुछेक बुद्धिजीवीयों ने सभी को कानून के दायरे में रहने की बात समझाते हुए शांति बनाए रखने की अपील की। जिसे अधिकतर ने मान भी लिया। परन्तु इस दौरान प्रशासन की कार्यप्रणाली को लेकर एक सवाल यह भी खड़ा हुआ कि वे एक पक्ष को तो धारा 144 समझाता रहा और दूसरी तरफ बिना किसी आज्ञा के प्रदर्शन करने वालों के समक्ष मिन्नते करता रहा। जिसे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि प्रशासन को ऐसे मामलों को निपटाने के लिए अभी लंबी कसरत करने की जरुरत है या फिर किसी हंडे हुए अधिकारी से मार्गदर्शन लेना चाहिए। अगर प्रशासन चाहता तो मामला बड़े ही शांतमयी ढंग से और प्रेम पूर्वक निपट सकता था। परन्तु आज के इस घटनाक्रम ने प्रशासन की कार्यप्रणाली से पैदा हुए माहौल को और भी पेचीदा बना दिया है, जिससे लगता है कि आने वाले समय में शहर के भाईचारे पर ग्रहण लगना स्वभाविक सी बात है। अब देखना यह है कि हर वर्ग से जुड़े बुद्धिजीवी इसे किस तरह से लेते हैं और आपसी सौहार्द बनाए रखने के लिए उनका क्या पहल होगी?

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