मजदूरों पर कब संवेदनशील होगी सरकार: मनरेगा योजना के कार्य में जेसीबी से खोदी जा रही मिट्टी

बछवाड़ा/बेगूसराय (द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: राकेश कुमार। भूखे-बेबस और बेसहारा प्रवासी मजदूरों का गांव वापिस आना जारी है। इस अभाव में सरकार अपना प्रभाव दिखाने के नुस्खे तलाश रही है। कोरोना कहर के बीच बिहार सरकार यह घोषणा कर चुकी है कि प्रदेश से लौटने वाले मजदूरों को गांव में रोजगार की गारंटी है। उक्त घोषणा के अनुरूप सरकार के पास मनरेगा से अच्छा कोई विकल्प भी नहीं है। शायद इन्हीं वजहों से मनरेगा के अंतर्गत बड़े पैमाने पर योजनाएं शुरू की गई हैं। लेकिन, बिहार सरकार के इस मंसुबे पर गांव की सरकार पानी फेरने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इसका जीता-जागता उदाहरण बेगूसराय जिले के बछवाड़ा प्रखंड अंतर्गत अरबा पंचायत के वार्ड तीन में देखने को मिला। जहां कुछ दिनों पहले ही मनरेगा के अभियंता द्वारा स्थल निरीक्षण के साथ मापदंड बनाया गया। जिसके तहत उक्त स्थल पर पोखर निर्माण व उड़ाही कार्य करना है। इधर अचानक पंचायत के कार्य एजेंसी द्वारा 2 दिनों से इस कार्य स्थल पर मजदूरों को छोड़ पोपलेन (बड़ी जेसीबी) से मिट्टी खोदने का कार्य करवाया जा रहा है। कार्य स्थल पर किसी प्रकार का कोई प्राकलन बोर्ड भी नहीं लगाया गया है, जिससे आम लोगों को सरकार द्वारा निर्धारित प्राकलित राशि समेत अन्य विस्तृत जानकारी मिल सके।

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बताते चलें कि मनरेगा योजना के अंतर्गत क्रियान्वित होने वाली योजनाओं में मशीन का उपयोग करने पर पूरी तरह पाबंदी है। बावजूद इसके उक्त पोखर खुदाई कार्य में पोपलेन से मिट्टी खोदी जा रही है। ग्रामीण एवं स्थानीय मजदूर रामप्रवेश यादव उर्फ बौआ यादव ने बताया कि सरकार तो चाहती है कि गांव आए मजदूरों को रोजगार मिले, मगर यहां तो जेसीबी व पोपलेन से काम करवा कर मजदूरों की हकमारी हो रही है। साथ ही उन्होंने जिला प्रशासन से आवश्यक पहल करने की मांग भी की। उक्त कार्य योजना में बड़ी जेसीबी के प्रयोग किए जाने के सवाल पर पंचायत की मुखिया ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। जबकि मनरेगा के प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी मिलन कुमार ने बताया कि उक्त कार्य को लेकर अभिलेख नहीं खोला गया है। अभिलेख नहीं खुलने की स्थिति में अगर किसी प्रकार का अग्रिम कार्य करवाया जाता है तो उसका भुगतान विभाग द्वारा नहीं करवाया जाएगा। मगर फिर मजदूरों के दिलों दिमाग में सिर्फ यह सवाल कौंध रही है कि उनके लिए कब संवेदनशील होगी गांव की सरकार।

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