तुसी तां डा… दे पुराणे साथी हो, साथ देओ, सेवा पाणी दी गल्ल आ तां कर देवांगे, जदों सेवा दी बारी आई तां कहिंदा अदे-अदे

हाल ही में कुछ समय पहले ही लोकसभा चुनाव संपन्न हुए हैं तथा पंजाब प्रदेश में एक सीट जो सबसे होट सीट मानी जा रही थी वो थी कांग्रेस छोड़ आप में शामिल हुए एक उम्मीदवार की। इस सीट पर जीत उम्मीदवार का राजनीतिक भविष्य तय करने वाली थी। इसलिए उम्मीदवार द्वारा सत्ता पक्ष से जुड़ने का जहां भरपूर लाभ लिया गया वहीं पुराने साथियों का साथ लेने के लिए भी अडी चोटी का जोर लगाया। उम्मीदवार के खासमखासों में से कुछेक की ड्यूटी लगी थी अपनों यानि पुराने साथियों को मनाने और उन्हें उनके पक्ष में वोट करने को राजी करने की। इसलिए उम्मीदवार की तरफ से उन्हें पूरी छूट थी कि वह जहां भी सैटिंग कर आएं, वे पूरी कर दी जाती थी। आज भले ही वह चुनाव जीत गए हों और उनकी अंतरआत्मा ही नहीं बल्कि पूरा हलका जानता है कि उन्हें जीत कैसे मिली और कहां से मिली। अन्यथा परिणाम कुछ और ही रहने वाले थे।

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खैर अब जीत तो जीत ही है। इसलिए हम इस चर्चा में न पड़कर धीरे-धीरे बाहर निकलकर आ रहीं उनकी करीबियों की करतूतों की करते हैं कि उन्होंने सैटिंग के चक्कर में अपने आका को कितना चूना लगाया होगा। पिछले दिनों चर्चा निकली कि उक्त सीट के उम्मीदवार के एक खासमखास, जिसकी ड्यूटी सैटिंग करवाने में लगी होगी का फोन कुछेक पार्षदों को नहीं बल्कि कई ऐसे वशिष्ट व्यक्तियों को गया तथा उनसे मिलने की ख्वाहिश जाहिर की गी। फोन पर लंबी चौड़ी बात नहीं की जा सकती, यानि मतलब साफ था कि वोट के बदले नोट की बात अब फोन पर कैसे की जा सकती है। आजकर तो लोग रिकार्डिंग भी बहुत करते हैं।

जब वह व्यक्ति मिलने पहुंचता तो जिससे मिलना होता था उसका एक चहेता साथ में रखता था ताकि उसके माध्यम से लेन देन की सैटिंग हो सके। एक जगह वह पहुंचा तो आगे से व्यक्ति ने कहा कि उसे कुछ नहीं चाहिए क्योंकि उसका उसके आका के साथ खासा प्रेम था और उसने बीच में बने बिचौलिए से कहा कि उसे जो लेना है ले ले वे तो कुछ नहीं लेंगे। इस पर दो-तीन दिन बाद जब बिचौलिया उनसे मिला तो उसने बताया कि भाजी ओ तां पहिलां ही बहुत घट दे रिहा सी अते उदे विच्चों वी अदे आप रखण दी गल कहि रिहा सी, इसलिए उसने नाह कर दित्ती। यह तो रहा एक वाक्य। दूसरा वाक्य सुनाता हूं , दूसरा क्या तीसरा या चौथा भी सुना दूं तो भी बात एक जैसी ही रहेगी कि आका का खासमखाम कहता था कि तुसी तां उना दे पुराणे साथी हो, साथ देओ, सेवा पाणी दी गल्ल आ तां कर देवांगे। आगे से जो सेवा के लिए तैयार हो जाता तो कहिंदा अदे-अदे। आ ही तां समां आ कमाई दा, मुड़ के केहड़ा इहनां ने पुछणा। अब आप हिसाब लगा सकते हैं कि अगर उसने 10-20 लोगों से सैटिंग करवा दी होगी तो उसने कितना माल अंदर कर लिया होगा तथा आका के समक्ष उसकी छवि फिर मेहनती वर्कर की। खैर हमें क्या जिसके पास है या जिसने जोड़ा है वो खर्च करता है। जोड़ा समझते हैं ना।

मुझे पता है आप बहुत समझदार हैं और समझ ही गए होंगे कि पैसा होना कितना जरुरी होता है। यह पैसा ही तो है जिसने चंद दिनों में आका जी को एक बहुत बड़े नेता के करीब कर दिया और कई तो ऐसे हैं जो पैर छुते रह जाते हैं। हालांकि पैसे की कमी उनके पास भी कुछ कम नहीं और अगर पैसे का जादू चल गया तो कुर्सियां बदलने में देर नहीं लगेगी। अरे हम भी किस टापिक पर बात करने लगे। बात तो हो रही थी सैटिंग करने व करवाने की ताकि आका का आशीर्वाद बना रहे और हम भी किस सैटिंग में पड़ गए। हम हमें क्या पता सैटिंग क्या होती है और चमचों को कैसे सैट रखा जाता है। हम तो ठहरे छोटे से पत्रकार। जिसकी याद भी शायद ही किसी को आती होगी। अब रही ईमानदारी की बात तो ईमानदारी पढ़ाने, पढ़ने और दिखावे के लिए बहुत अच्छी है और असल जिंदगी में चंद लोग ही होते हैं जो इसका अनुसरन भी करते हैं। अच्छा जी अब हमें दे इजाजत। तिलचट्टों से जुड़ी ओ सोरी-सोरी तिलचट्टे नहीं तलवेचट्टों से जुड़ी कोई और चर्चा लेकर आपके समक्ष पेश होंगे। तब तक के लिए दें इजाजत। जय राम जी की।

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